Saturday, April 12, 2014

शुभ संकेतों का त्रुटियुक्त अनुवाद

शुभ संकेतों का त्रुटियुक्त अनुवाद
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बचपन में प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण करते हुए ही परीक्षाओं में मिलती आशातीत सफलता , किशोरावस्था में खेलकूद ,फिर अच्छे शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश प्राप्ति की सफलता, युवा होकर और जीवन में बढ़ते हुए कला ,विज्ञान ,व्यवसाय और खेल इत्यादि में कल्पनातीत सफलतायें हममें से कुछ के हिस्से में आती हम सभी यह देखते हैं. उपलब्धियों की आस में रहते हरेक व्यक्ति को जीवन के ये शुभ संकेतों का सही अनुवाद कर जीवन प्राथमिकतायें तय करनी चाहिए .


निश्चित ही आशातीत सफलतायें जिन्हें मिलती हैं वे औसत या साधारण से अधिक प्रतिभा संपन्न होते हैं और इनमें से ज्यादातर मध्यम वर्ग , प्रतिष्ठा और आर्थिक दृष्टि से साधारण परिवार से होते हैं. ज्यों ही इन्हें जीवन में सफलताओं के रूप में "शुभ संकेत " मिलते हैं इनके सपने आसमान छूने लगते हैं. ये मान प्रतिष्ठा और धन वैभव के लिए अति व्यग्र हो जाते हैं. जल्द ही ये भूल जाते हैं कि इनका पिछला जीवन थोड़ा कम वस्त्र ,कम भोज्य ,कम प्रसिध्दि, कम सुविधा  और कम मान सम्मान में भी ठीकठाक चलता रहा था .मिलती सफलता उनकी जीवन शैली को एकदम बदल के रख देती है.  निसंदेह उनमें अनन्य प्रतिभा होती है. किन्तु वे अपनी प्रतिभा का लोहा ,दुनिया को मनवाने की महत्वाकांक्षा पाल लेते हैं.  ऐसी महत्वाकांक्षा कतई ख़राब नहीं होती , किन्तु प्रतिभा का लोहा मनवाने के लिए आर्थिक उपलब्धियों और बाह्य आडम्बर को बढ़ाना ही जब उनका लक्ष्य हो जाता है तो लेखक को नापसन्द होता है लेखक इसे प्रतिभा को व्यर्थ गँवाना मानता है. और उस प्रतिभा संपन्न ( आज के हिसाब से तथाकथित सफल ) व्यक्ति पर उसे दया आती है.  घर परिवार की स्थिति लगभग गुमनामी की रही थी , अार्थिक रूप से कुछ लाख रुपये संपन्न थे.  सफलता मिलना आरम्भ हुआ तो धन वैभव ,प्रसिद्धि और सम्मान दिन दूना रात चौगुना होते हुए कुछ ही वर्षों में वे अरबों के आसामी बन जाते हैं . दो तीन कमरों के घर में जीवन यापन , कुछ वस्त्रों और दो पहियों के वाहन के आदी अब भव्य बंगलों , कीमती वाहनों , कीमती वस्त्रों तथा आभूषणों और सौंदर्य प्रसाधनों से सजने लगे. शराब शायद पीते ही नहीं थे या साधारण शराब पीते रहे थे अब सामूहिक रूप से शैम्पेन खोलते दृष्टव्य होने लगे.

स्पष्ट है की प्राप्त प्रतिभाजन्य सफलताओं से इन्होने अपना जीवन स्तर उठा लेना एक मात्र लक्ष्य बना लिया है.  धन वैभव की तीव्रता से प्राप्ति के लिए सटोरियों और हीन व्यवसायों का आश्रय जिसमें लाभ अधिक होता है अपनाने लगते हैं .प्रसिध्दि को भुनाने लगते हैं . जिन वस्तुओं का स्वयं प्रयोग नहीं करते और जिनकी गुणवत्ता भी लाभकारी है अथवा नहीं जाने बिना धन प्राप्ति के लिए उनके विज्ञापन करने लगते हैं .ऐसी अपार सफलतायें पिछली सदी से सिने क्षेत्र , खेल और राजनीति में ज्यादा मिली हैं विशेषकर युवा वर्ग इनसे जल्दी प्रभावित होता है।  जल्दी ही प्रशंसकों का एक बड़ा वर्ग ऐसे सफल व्यक्ति को सरलता से मिलता है।  प्रशंसक इन्हें अपना आदर्श मान उनका अंधानुकरण तो करते ही हैं ऐसे ही सपने भी सजाने लगते हैं .सफलता से मिलती एक तरह की मूर्छा में , अपने कृत्यों का समाज और पीढ़ी पर क्या विपरीत और बुरा प्रभाव पड़ता है इसका ध्यान सफल हो रहे व्यक्ति को नहीं हुआ .लेखक नामों का उल्लेख कर लेख को विवादों में लाकर ज्यादा प्रचारित कर सकता है , किन्तु ऐसी सस्ती लोकप्रियता के मोह किये बिना अपने सामाजिक दायित्वबोध को मान मात्र प्रभावी रूप से अपने वह विचार रख रहा है जिसका प्रभाव किसी पर अच्छा पड़े या ना पड़े किन्तु बुरा कतई ना पड़े. बुराई की विद्यमानता वैसे ही बहुत है , इसे और बढ़ाना सिध्दांत विपरीत है.


पहले रहते होंगे लेकिन अब एक भी उदाहरण देखने नहीं मिलते जिसमें अनन्य प्रतिभा के धनी किसी व्यक्ति ने अपनी सफलताओं और जीवन शुभ संकेतों को सही तरह से पढ़ा हो और उसके हाथ से ऐसे कार्य संपन्न हुए हों जो प्रमुखता से समाज का स्तर उन्नत करने में सहायता करते हों. हमने , निजी बंगलों और निजी व्यवसाय पर अरबों अरबों रुपये व्यय करने वाले आज के सफल अनेकों देख लिए किन्तु एक भी उदाहरण ऐसा नहीं देखा जिसने इसके स्थान पर अपनी अर्जित अपार संपत्ति में से  व्यय से कोई बिजलीघर , कोई सड़क निर्माण या इस तरह का कुछ निर्माण कर समाज को अर्पित किया हो .  इन सफल लोगों ने सफलता मिलने के पूर्व ये अभाव घर और अड़ोस पड़ोस में अनुभव किये हुए थे. लेकिन जैसे ही धन वर्षा हुई अपना स्तर तो अनेकों गुणा बढ़ाया लेकिन समाज के लिए कुछ नहीं किया , बल्कि पीढ़ी और समाज को दिशाभ्रमित ही कर दिया . वास्तव में यह समाज तब तक उन्नति उन्मुख था जब तक समाज कल्याण करते महान लोग समाज को उपलब्ध थे. हम साधारण लोग ऐसे लोगों के पद चिन्हों पर चल अनायास ही समाज भावना को पुष्ट करते और अपना समाज सुखी रख लेते थे.

लेकिन आज के सफल लोगों के पद उन राह पर ही बढ़ते दिखते हैं , जिसकी मंजिल स्व-सम्पन्नता ही होती है.  साधारण व्यक्ति जो सफल लोगों के पदचिन्हों पर चलने का आदी रहा है , इन तथाकथित महान और सफल व्यक्तियों के पथ और पदचिन्हों पर चलने लगा है. सभी स्व-सम्पन्नता का लक्ष्य और सपना लिए शिक्षा प्राप्त करने लगे हैं .और अपना जीवन प्रशस्त करने लगे हैं .  व्यक्तिगत उपलब्धियों के सपने के रथ पर सवार इस तरह बढ़ने लगे जिसके नीचे आ अनेकों के सपने कुचल गये हैं .  कुचले जाने की पीड़ा में कुचले गए लोगों के मन में वैमनस्य पनपा है . परिणाम हम देखते हैं हमारी संस्कृति और समाज में व्याप्त संतोष धन ओझल होने लगा है. किसी के मुश्किल पलों में सच्चा हितैषी अब कम उपलब्ध है.  जहाँ तहाँ छल और ठगाई का बोलबाला है.
 सफल व्यक्ति जीवन में प्राप्त शुभ संकेतों का सही अनुवाद कर ग्रहण करते तथा ऐसी मिसाल प्रस्तुत करते जिसमें उनके हाथों सफल होते ही समाज कल्याण के कार्य उनके स्वहित से ज्यादा दिखते तो पीछे आ रही पीढ़ी को ऐसा आदर्श मिलता जिसका अनुगामी होकर वे समाज को पुष्ट करते. चिंताजनक स्तर पर पहुँच गई सामाजिक बुराईयाँ स्वमेव नियंत्रित होती .

ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा और शुभ संकेतों को व्यर्थ जाया कर अपने जीवन को सार्थक ना कर इन सफल व्यक्तियों का यह समाज को धोखा तो है ही जिसके प्रति उसके दायित्व थे. लेखक इसे ईश्वर के साथ भी अन्याय ही मानता है जिसने उसे यह प्रतिभा जगकल्याण में लगाने के लिए दी थी.


विडम्बना ही कहें एक सफल व्यक्ति भी अपने ईश्वर की भक्ति ,पूजा और श्रध्दा इसलिए करता है क्योंकि ईश्वर उनका और सभी का भला करने वाला माना जाता है .  लेकिन यह सफल व्यक्ति अपने ईश्वर से यह गुण ग्रहण नहीं कर पाता कि अपने मानने वाले समाज और प्रशंसक का वह स्वयं भला करे. वह अपनी लालसाओं और हवस के वशीभूत स्वयं को ईश्वरनिष्ट भी नहीं सिध्द कर पाता यद्यपि धर्मालयों में जा झूठी अर्चना भक्ति करते अवश्य देखा जाता है.

 यह समाज और पीछे आती प्रशंसकों की भीड़ ही उसे महान ,संपन्न और सफल बनाती है. लेकिन बदले में उनके अभाव और दुखदर्द कम करने के स्थान पर आज का सफल व्यक्ति उनकों गलत सपना और गलत राह दिखाने का अपराध करता है जिस पर चलकर भोगलिप्सा ,स्वार्थ प्रवृत्ति , अनैतिकता और भ्रष्टाचार ही चंहुओर पनप रहा है. फिर विडम्बना ही लिखूंगा की सरेआम दिशाभ्रमित और पथभ्रमित करने के अपराध का दंड नियत करने का कोई प्रावधान वर्तमान दंडविधान में नहीं है (पहले धर्म-विधानों में था ,लेकिन धर्म की भी अब अपने सुविधा अनुसार विवेचना की रीति चल गई है ).


अंत दूर नहीं कर इतना लिख देना उचित होगा कि पिछलों की भूलों को अब हम भूलें . अब जो सफल हों प्राप्त होने वाले जीवन शुभ संकेतों को सही पहचाने और अनुकूलताओं  के चलते सुविधा, भोग-उपभोग और धन वैभव के चक्करों में फिरते ही अपने जीवन को ना बिता कर उन चक्करों से निकल जीवन को स्व-हित के स्थान पर समाजहित में लगाएं. समाजहित होगा तो स्व-हित तो स्वमेव ही होगा. साथ ही सामाजिक दायित्वों की पूर्णता से प्राप्त मनुष्य जीवन भी  सार्थक होगा.

--राजेश जैन
12-04-2014















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