Tuesday, April 8, 2014

महत्वाकांक्षा

दिवास्वप्न - कहते हैं कठिन होते हैं साकार होना 
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दो बेटियाँ जन्मी थी , तीन वर्षों के अंतराल में उसके घर में . कुछ अजीब से नामकरण किये थे उनके . बचपन में बेटियाँ आकर बताती उसके टीचर नाम का अर्थ पूछ रहे थे . वह उनसे कहता उनको यह बताना , "इस नाम में (शब्द ) का अर्थ उन्हें (बेटियों को ) स्वयं प्रदान करना है ". बच्चे समझ नहीं पाते थे उस छोटी वय में , क्या होता है किसी शब्द में अर्थ भरना . बात आई -गई होती रहती .

विशेषकर  माँ के गम्भीर यत्नों से कुछ अलग से पालन पोषण के बीच बच्चे बड़े होने लगे . उनके छोटे मन में कई बार प्रश्न और द्वन्द उत्पन्न होते . सब जैसा करते /पहनते /खाते घूमते-घामते और पार्टियाँ इत्यादि इन चलन से हट कर, क्यों उनसे घर में अलग सा करवाया जाता है ?

अर्थ समझ में आना आरम्भ हुआ जब किशोरावस्था परिपक्वता पर पहुँच रही थी . इतना कर लेने में  जब वह सफल हुआ तब कल्पना की उड़ान (जिसकी कोई सीमा नहीं होती ) बहुत ऊंचाई को छूने लगी . अब वह सोचता कोई ऐसे विशेष तरह के किसी घर के संस्कारित बेटे उन्हें दामाद रूप में मिल जाएँ .

ताकि वह अनुकूल परिस्थितियाँ उपलब्ध हो सकें जिससे बचपन से बच्चों के मन में जो डाला जाता रहा ,वे अपने नामों को (जिनका अर्थ सब पूछते रहे थे) को सारगर्भित और उच्च अर्थ अपने नेक कर्मों और आचरण से दे सकें .

जीवन के सत्तर -अस्सी वर्ष कभी तो बहुत लम्बे से लगते हैं और कभी तो इतने छोटे में सिमट जाते हैं कि जीने वाले को अंत समय में हैरत हो जाती है इतनी सी अवधि में यह विदाई बेला कैसे आ गई ?

अपने छोटे से दायरे में स्वयं अति संतोषी सा  प्रख्यात , यह साधारण व्यक्ति इतना महत्वाकांक्षी होगा ,ऐसी किसी को भनक भी नहीं थी .लेकिन उसे अपनी अति महत्वाकांक्षा का भली-भाँति ज्ञान था . जो उसे बिन कहे रूप में अपने बच्चों से अपेक्षित था  . उसकी महत्वाकांक्षा अति विशिष्ट थी . बच्चों के जीवन के सत्तर -अस्सी वर्ष इतने सामान्य तरह से पूरे होते जाते देखने की नहीं थी  .

उसे विश्वास है सपत्निक उसने अब तक अपने विशेष तरह के पालन पोषण से जिनका जीवन आरम्भ सजाया है ,उसके दामाद आगे इसी तरह निभाएंगे . जिनके नाम का अर्थ नहीं था उसकी बेटियों के जीवन को आगे भी तराशे जाने में सहायता करते हुए उनके कार्य मानवता और समाजहित तथा समाज में शोषित -व्यथित नारी की चेतना और उनके सम्मान रक्षा में सुनिश्चित करायेंगे .
ऐसा होने पर ना सिर्फ नामों को अच्छा अर्थ मिल जाएगा ,बल्कि आज के बुरे होते जा रहे सामाजिक वातावरण को सुधारने के लिए क्षितिज पर से 1 नये तरह को सूर्य उदित होगा जिसके प्रकाश और ऊष्मा में वह सामर्थ्य होगा जो संसार में मानवता इस रूप में व्याप्त करेगा .

उसे ,बच्चों को धनवान ही नहीं अपितु इस तरह महान होता देखना है . उनके महान कर्म और आचरण ऐसे होने चाहिए ताकि  संसार में अवतरित हर मानव अपने पूरे जीवन को सार्थक तरह से जीने में सफल हो सके ऐसा सामजिक परिदृश्य साकार आकार ले सके..

--राजेश जैन
08-04-2014

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