Thursday, April 10, 2014

जीवन महत्त्व - समय सापेक्ष गणना

जीवन महत्त्व - समय सापेक्ष गणना
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सृष्टि अनादि काल से अनंत काल तक चलती रहना है.  प्राणी जीवन को य़ा विश्व में कुछ भी अच्छा या बुरा घटित होता रहे इससे अप्रभावित समय निरन्तर अपनी गति से गतिशील रहा है रहेगा. अनादि काल की किसी घटना का आज उल्लेख किया जाए तो अधिकांश इसे कथा -कहानी जैसे सुनते और मानते हैं. इसलिये अपने स्वयं के जीवन महत्त्व को समझने के लिए पिछले पच्चीस सौ वर्षों को लेकर ही लेख करना उचित होगा. आज इतने समय को कोई भी विभिन्न साक्ष्य , कला कृतियों , लिखित ग्रंथों के अस्तित्व से सिर्फ कथा कहानी ही नहीं मानकर,  सरलता से उसे यथार्थ स्वीकार कर सकेगा.

सम्पूर्ण विश्व में मानव जनसँख्या का औसत इन वर्षों में 5 अरब अगर लिया जाए तब इन पच्चीस सौ वर्षों में

कुल मानव वर्ष = 5 अरब X 2500 = 12500 अरब मानव वर्ष  .............  (1 )

हमारा एक जीवन 80 वर्ष का माना जाए तो समय मानचित्र पर

एक जीवन  = 1X 80 = 80 मानव वर्ष  …………………….... (2)



(1) और (2) के मानव वर्ष की तुलना करें तो पाएंगे "80 मानव वर्ष" ( हमारा अपना जीवन ) , कुल 12500 अरब मानव वर्ष जैसी विशाल संख्या के समक्ष नगण्य ही है .




अब हम विचार करें हर अलग मनुष्य का समय मानचित्र पर महत्त्व नगण्य ही होता है.  तब भी वह 70 -80 वर्ष के अपने जीवन में स्वयं को भ्रम , कुछ अनुकूलताओं और अभिमान में चूर होकर कितना बड़ा -महान इत्यादि समझने की भूल करता है.

यह जीवन गणित तो बहुत स्पष्ट है , किन्तु जीवन में विभिन्न फेर में उलझे रहने से इतनी स्पष्ट बात भी दृष्टि गोचर नहीं होती है. ज्यादातर लोग आज धन वैभव , दीर्घ यौवनसुख  , शक्तिशाली व्यक्तित्व या प्रकांड ज्ञानी बनने  के फेर में उलझे हुए हैं. पूरा जीवन स्व-हित और कुछ हद तक परिजन हित में लगाते हैं. यह सहज और स्वाभाविक भी है .लेकिन मनुष्य और सामाजिक विकास यात्रा के दृष्टिकोण से इस तरह के जीवन का महत्त्व अति साधारण होता है.  सभी अगर इतने में ही उलझे हुए हों तो समय तो गतिशील रहता आगे बढ़ता जाएगा किन्तु मनुष्य समाज इसके विपरीत थमा रह जाएगा. 

हमारा समाज बुराई से ग्रसित है हम अपने और परिजनों को इसमें सुरक्षित या आशंकारहित नहीं देखते हैं. तब आवश्यकता यह होती है कि मनुष्य समाज थमा ना रहे. अपितु समय के साथ उस दिशा में गति करे जिससे मनुष्य समाज हमारे अपने लिए , परिजनों के लिए  और समस्त अन्य के लिए सुरक्षित या आशंकारहित बने.

अगर मानव यात्रा को गतिशील रखना है तो हमें स्वयं को और अपने क्रियाकलापों को अपने तक सीमित नहीं रहने देना है. अपना चिंतन स्वयं और परिवार से ऊपर लाकर मानवता और समाज के हित में वृहद (विस्तारित) करना है. और इसलिए प्रत्येक को अपने जीवन गुणवत्ता , उसकी रेटिंग ऊँचा उठाने की तत्परता दिखानी होगी.

कैसे की जाए जीवन रेटिंग? …
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धन और ऋणात्मक स्कोर जीवन प्राथमिकताओं और क्रियाकलापों के अनुसार निम्नांकित पध्दति से की जा सकती है.

(1) जो स्वयं और परिजन हित में जीते जीवन संपन्न करता है उसे  ( बीस जीवन के सहारे के एवज में )   20 अंक दिए जायें .

(2) जो स्वहित में जीते जीवन संपन्न करता है उसे  ( एक जीवन के सहारे के एवज में )   1  अंक दिया जाये.

(3) एक उदाहरण के रूप में एक हमारे राष्ट्रपति रहे वैज्ञानिक जिन्होंने अपना जीवन देश और समाज को समर्पित किया लगभग पचास वर्षों में औसत रूप से 20 लाख लोगों के प्रति वर्ष प्रेरणा स्त्रोत बने रहे. ऐसा कर देश समाज को अच्छी दिशा देने को प्रयत्नशील रहे उन्हें 50X 20 लाख = 1 हजार लाख अंक दिए जायें .

(4) एक हमारा सिने अभिनेता जिसने अपना ,अपने परिजन के लिए अकूत धन वैभव बटोरा और जो स्वयं और परिजन हित में जिया है उसे +20 अंक ( बीस जीवन के सहारे के एवज में ) और
50 वर्षों तक सिने परदे पर छाये रहकर अपने औसत प्रतिवर्ष 1 करोड़ प्रशंसकों की सोच और जीवन शैली को भोगलिप्सा की ओर दुष्प्रेरित करने के लिए -(50X1 करोड़) = -50 करोड़ इस तरह -49,99,99,9,80 अंक दिए जायें.

जीवन रेटिंग का यह काल्पनिक पैमाना बहुत लोगों को सही नहीं लग सकता है , किन्तु लेख में इस उद्देश्य पर जोर दिया गया है कि हम अपनी जीवन शैली पर गौर करें. ऐसा जीवन जिसका महत्त्व विशाल काल पटल पर नगण्य है , में घटिया क्रियाकलापों में लगकर मानवता और समाजहित में नेगेटिव ( ऋणात्मक ) उपलब्धि के साथ व्यर्थ ना करें. ना ही हम मानवता और समाज को अहितकर दिशा में ले जाते लोंगों का अनुकरण करें.

अगर यह लेख स्व-जीवन आत्म अवलोकन को प्रेरित कर सके जिससे सामाजिक परिदृश्य आज से भिन्न और बेहतर बनता है तो लेखक को प्रसन्नता होगी।  अन्यथा लेखक और बेहतर तर्कों और अभिव्यक्ति के साथ  बार बार आते रहने को तत्पर रहेगा …

--राजेश जैन 
10-04-2014










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