Saturday, January 4, 2014

बरगद

बरगद
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भव्य रहा था बरगद यह
देता था छाया पथिक को
शीतल बयार जिसके तले
राहत देती रही पथिक को

अब बूढ़ा वह बरगद है
और गिरने को तैयार है
बच्चे आ रहे अब जो हैं
अनजाने भव्य इतिहास से

नहीं जानकार तो क्या
जीवन बरगद का बेकार था ?
बरगद गिरता अब है तो
पूरा कर कर्तव्य अपना

नहीं व्यथित वह है अब
कोई जाने ना माने उसे
जीवन में देखा था उसने
यों क्रम आने जाने का

--राजेश जैन

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