Thursday, January 2, 2014

नारी चेतना और सम्मान रक्षा

नतमस्तक
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पिछले दिनों हम ( सपरिवार ) एक पारिवारिक सगाई कार्यक्रम के हिस्सा हुए . वर पक्ष परिवार के लिए हाल में ही परिचय से बिल्कुल नया सा था. सभी अतिथि की उपस्थिति बहुत ही गरिमा पूर्ण थी , उनके लिये "संभ्रांत" विशेषण का प्रयोग  उचित है.
जैसा होता है पुरुष और नारी दोनों ही हमारे अतिथियों में सम्मिलित थे. सभी में उल्लेखनीय और प्रेरक गुणों की विद्यमानता है.  वर की बुआ जी का उल्लेख विशेष रूप से इस लेख का केंद्र बिंदु है. उन्होंने वार्तालाप में अवगत कराया कि वर्षों पूर्व जब अपने भाई के लिए वे कन्या देखने जा रहीं थीं तो उनके घर के बुजुर्ग सदस्यों ने उन्हें यह कहा कि  "वहाँ जाने पर वे कन्या के हाथ और पाँव विशेषरूप से देखें , जिनके हाथ और पाँव सुन्दर होते हैं वे लड़कियाँ ससुराल में निभती और निभाती हैं".
बाद में जब कन्या उनके समक्ष उपस्थित हुईं तो उसके चेहरे की मासूमियत उन्होंने देखी उसी  क्षण उन्हें घर से मिले निर्देश भी स्मरण हो आये. समक्ष उपस्थित कन्या में उन्हें अपनी ही बेटी की छवि दिखी उनके विवेक ने उन्हें कन्या के हाथ , पाँव किसी वस्तु की तरह अवलोकन करने से इंकार किया . कन्याओं को इस दृष्टि से देखा जाना उन्हें अन्याय सा लगा ,स्वयं वे नारी ही हैं  उनका ह्रदय द्रवित हो आया और उनकी पलकें तब अश्रुओं से भीग गई.
बुआजी ने आगे यह भी बताया कि पहले यह  रिवाज भी रहा है कि नववधु के मायके से आये दहेज़ सामग्री को एक कमरे में सजा कर समाज के आमंत्रितों के अवलोकन को रखा जाता था.  ऐसे एक अवसर पर घर के बड़ों ने सामान के सजावट का दायित्व उन्हें दिया.  उन्होंने निर्देश का पालन किया और दहेज़ सामग्री एक कमरे में सजा  दी और कमरे में ताला लगा दिया.  जब आमंत्रित आने आरम्भ हुए तो उस कमरे को खोलने के आदेश उन्हें मिले. उन्हें इस चलन से असहमति लगी और उन्होंने चाबी खो गई कहते हुए उस कमरे को बंद रहने दिया.
ये घटनाएं तो उन्होंने अतीत से स्मरण कर हमें बताई लेकिन वर्णित कार्यक्रम में वे वर पक्ष से सम्मिलित थी , जब कार्यक्रम में कन्या पक्ष से भेंट दी जाने लगी तो उन्होंने हाथ जोड़ लिए और अवगत कराया कि ऐसी भेंट ग्रहण ना करने का उनका नियम है. उनके कथन और आचरण दोनों में सामन्जस्य दर्शित था. इसे देख उनके समक्ष हम नत मस्तक हुए .
नारी की समाज में दयनीय सी दशा से बचाने स्वयं नारी में ऐसी चेतना आवश्यक है. ऐसी नारी मूर्तरूप जब सम्मुख है तो "नारी चेतना और सम्मान रक्षा " यह पेज ही नतमस्तक होता है.

देखें कितनी  नारी ही नहीं, पुरुष भी पढ़ और आगे बढ़ कर इस तरह का नियम शिरोधार्य कर सकते हैं ? जिससे समाज से नारी को दयनीयता से निकाला जा सके.

राजेश जैन
03-01-2014

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