Monday, September 20, 2021

पत्नी - सुदर्शना …

 

पत्नी - सुदर्शना … 

धरती पर बिखरे दानों को चुगने एक सुंदर पक्षी, ऊपर से उड़ता हुआ आता देखने के साथ ही मेरी दृष्टि, वहाँ घात लगाए बैठी बिल्ली पर भी पड़ी थी। त्वरित रूप से मेरे मन में पक्षी के प्राण रक्षा के भाव आए थे। मैंने दौड़ लगाई थी। दाना चुगने बैठ चुके पक्षी पर बिल्ली, जब झपटने की तैयारी में थी तभी मेरे पहुँच जाने से पक्षी दूर फुदका, फिर उड़ गया था।

मंदिर, यूँ मैं नियमित नहीं आता हूँ। आज मेरा छब्बीसवां जन्मदिन था और अवकाश का संयोग भी था। मम्मी ने कॉल पर विश करते हुए, दर्शन के लिए मुझे मंदिर जाने को कहा था। इस कारण विलंब से जब मै मंदिर आया तब तक इक्के-दुक्के दर्शनार्थी ही बचे थे। दर्शन के बाद यूँ ही घूमता हुआ मैं मंदिर की छत पर आया था। संयोग से, तभी अनायास ही पक्षी के प्राणों की रक्षा हो गई थी। 

इस स्थान पर आसपास कोई और नहीं था। मंदिर में होने से मिलती शांति का अनुभव करते हुए मैं, वहीं मुंडेर से टिक कर आसमान की ओर निहारने लगा था। तब ही मुझे अपने सामने दिव्य प्रकाश दिखाई पड़ा था। पल भर में ही वह प्रकाश, एक मानव सदृश आकृति में परिवर्तित हो गया था। मुझे, उस दिव्य मानव के मुख से निकली वाणी सुनाई दी थी। वह कह रहे थे - 

प्राण रक्षक की तुम्हारी भावना से प्रसन्न हो मैं, तुम्हें मुझसे दो वरदान माँगने की अनुमति देता हूँ। 

मैं, चमत्कृत हुआ, मंत्रमुग्धता से उन्हें सुन रहा था। कुछ कह नहीं पाया था। तब दिव्य मानव ने ही पुनः कहा था - 

तुम्हारी वय विवाह की है। अतः ये वरदान तुम्हारी वधु के लिए उपयुक्त, योग्य कन्या से सबंधित हैं। पहला वरदान सरल है। दूसरे के चयन में, मैं हर विकल्प में संभावना बताते हुए उसमें से, श्रेष्ठ चयन हेतु तुम्हारी सहायता करूंगा। अब बताओ मनोहर, तुम्हें मुझसे ये वरदान चाहिए हैं?

मैं अचंभित हुआ था, दिव्य मानव मुझे मेरे नाम से संबोधित कर रहे थे। मैंने मन ही मन, उन्हें भगवान सबंधित करना तय किया। फिर कहा - मेरे भगवन, मैं आपकी आज्ञा शिरोधार्य करता हूँ। 

दिव्य मानव ने तब, मेरे सामने अनेक फोटो रखीं थीं फिर कहा - पहला वरदान, इन कन्याओं में से अपनी परिणीता बनाने के लिए तुम्हें, एक का चुनाव करना है। 

मैंने सभी फोटो ध्यानपूर्वक देखे थे। दिव्य मानव ने यह तो सरल वरदान बताया था मगर इन रूपसी कन्याओं में से, एक चुनाव कर पाना मुझे, दूभर कार्य लगा था। कठिनाई से तय करते हुए मैंने उनमें से एक फोटो, दिव्य मानव के हाथ में दे दी थी। 

दिव्य मानव ने तब अन्य फोटो हटाते हुए, पुनः चार फोटो मेरे समक्ष रखे थे। फिर बताया - 

तुम्हारे द्वारा चयनित कन्या का नाम सुदर्शना है। इन चार फोटो में, सुदर्शना के चार रूप हैं। अब दूसरे वरदान में तुम्हें सुदर्शना का कम से कम सुंदर, वह रूप पसंद करना है, जिसका होना तुम अपने जीवनकाल में देखना चाहते हो। 

मैंने चारों तस्वीरों पर दृष्टि डाली थी। इन तस्वीरों में सुदर्शना के क्रमशः यौवना से वृद्धा होने के चार रूप थे। 

अपनी पत्नी का वृद्धा वाला रूप किस पति को पसंद आता है। मैंने चार में से, ‘पहले वरदान’ में दिखाई वाली ही, सुदर्शना की तस्वीर दिव्य मानव को देते हुए कहा - भगवन, मेरी पत्नी का, यह रूप देखना मुझे पसंद होगा। 

दिव्य मानव ने पूछा - मनोहर, इस वरदान के प्राप्त करने का अर्थ तुम्हें समझ आता है?  

मैंने कहा - भगवन, आप ही अर्थ बताइए। 

दिव्य मानव ने बताया - सुदर्शना का यह रूप, अब 4-5 वर्ष ही और रह पाएगा। फिर सुदर्शना के रूप में (क्षीणता) परिवर्तन होते ही, तुम्हारे जीवन का अंत हो जाएगा। 

मैं भयाक्रांत हो गया। मैं इतने कम समय में मरना नहीं चाहता था। मैंने अब बाकी तीन में से पहली तस्वीर उठा कर उन्हें दी थी। इसमें सुदर्शना का ठीकठाक आकर्षक रूप विधमान दिख रहा था। 

दिव्य मानव ने मेरे अनकहे ही आशय को समझा और कहा - मनोहर, सुदर्शना का यह रूप जब तुम्हारे दो बच्चे, 8-10 वर्ष के होंगे तब तक ही रह सकेगा। सुदर्शना के इस रूप के भी क्षीण होने पर, तुम्हारे जीवन का अंत आ जाएगा।   

मेरे शरीर में भय से सिहरन दौड़ गई। किस पापा को पसंद होगा कि जब उसके बच्चे बाल वय में हों, तब ही उनके सिर पर से पिता का साया उठ जाए। वस्तुस्थिति को समझते हुए अब मुझे सुदर्शना की वृद्धा हुई (चौथी वाली) तस्वीर उठानी चाहिए थी मगर मैं, अपने रूप-लावण्य लोभी, भावना संवरण नहीं कर पाया था। मैंने, सुदर्शना जिसमें संभ्रांत महिला दिखाई दे रही थी, वह तस्वीर दिव्य मानव को दी थी।   

दिव्य मानव ने इसे देखते हुए कहा - सुदर्शना के इस रूप में होते तक तुम्हारे बच्चे, बड़े तो हो जाएंगे मगर उनके विवाह नहीं हुए होंगे। 

मैंने दिव्य मानव के आगे कहने के पहले ही, मन मसोसते हुए सुदर्शना की वृद्धा रूप वाली तस्वीर उन्हें दे दी थी। 

इस तस्वीर को लेते हुए, दिव्य मानव ने कहा - तथास्तु! 

मैं, उन्हें दुखी दिखाई दिया तो उन्होंने कहा - मनोहर, तुम्हारे द्वारा सुदर्शना का यह रूप देखना, माँग लेने के बाद एक अच्छी बात होगी। 

मैंने उत्सुकता में पूछ लिया - वह क्या, भगवन!

दिव्य मानव ने कहा - वह यह कि सुदर्शना का यह रूप भी ढ़लता, बदलता जाएगा। तब भी तुम रूप के ऐसे बदलने में भी जीते रह सकोगे। तुम उस दिन मृत्यु को प्राप्त होगे जिस दिन सुदर्शना, अपने कंपकंपाते हाथों में थामे गिलास से तुम्हें औषधि पिला रही होगी। 

अब मुझे स्पष्ट हो चुका था कि इन वरदान के माध्यमों से मैंने अपने लिए, अभी रूप लावण्या वधु सुदर्शना और उसके सहित, अपने दीर्घ जीवन की सुनिश्चितता कर ली थी। 

जब मुझे, दिव्य मानव आकृति मेरे सामने से ओझल होने की तैयारी करते प्रतीत हुई तो मैंने अधीरता से पूछ लिया - 

भगवान, ये तो मुझे बताते जाओ कि सुदर्शना मुझे कहाँ और कैसे मिल सकेगी?

दिव्य मानव ने कहा - शीघ्र ही सुदर्शना का तुमसे मिलने का प्रसंग बनेगा। 

फिर इस वाणी की गूँज मात्र, मेरे कर्णों में रह गई थी। दिव्य मानव, दिव्य प्रकाश में परिवर्तित होते हुए एक सूक्ष्म पुंज होकर ऊपर अनंत आकाश में लुप्त हो गए थे ….

(अगले भाग में समाप्त)

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

20-09-2021   

पत्नी - सुदर्शना (2)… 

मेरे ऑफिस में एक दिन, मैंने अपने फ्रेंड से सुना कि एक नई लड़की ने हमारे प्रोजेक्ट में ज्वाइन किया है। वह अत्यंत रूपवती है। तब मेरी भी इच्छा हुई कि मैं भी उसे देखूँ, फिर भी मैंने इसके लिए अनावश्यक अधीरता प्रदर्शित नहीं की। 

उस संध्या ऑफिस से लौटते समय, जब मैं पार्किंग में अपनी बाइक लेने गया तो देखा कि एक लड़की अपनी स्कूटी, वहाँ खड़ी अन्य गाड़ियों में से निकालने में परेशान हो रही है। मैंने उसकी सहायता करना उचित समझा। मैंने उसके पास जाकर, पूछा - मैं, सहायता करूं? आपकी!    

लड़की ने तब मेरी ओर देखते हुए कहा - जी हाँ, कृपया! 

जैसे ही तब मैंने उसका चेहरा देखा, मुझे ‘दिव्य मानव’ द्वारा मुझे दिखाई, तस्वीर स्मरण आ गई। यह लड़की, उस तस्वीर वाली सुदर्शना थी। मैंने चौंक जाने के भाव छुपाते हुए, उसकी स्कूटी निकाल दी थी। 

उसने, मुझे थैंक यू, कहा था। 

तब मैंने पूछा - आपका नाम सुदर्शना तो नहीं?

अब वह चकित हुई थी। उसने उल्टा प्रश्न किया - आप मेरा नाम कैसे जानते हैं?

मैंने मुस्कुराते हुए झूठ कह दिया - जस्ट अ गेस वर्क, मुझे लगा कि आप पर ऐसा ही कोई नाम शोभा देता है।

सुदर्शना मेरे कहने से लजा गई थी। फिर वह और मैं, अपने अपने रास्ते चल निकले थे। कुछ दिनों तक सुदर्शना और मेरे बीच कुछ विशेष बात नहीं हुई थी। हाँ मैं, सहकर्मियों में उसके रूप की चर्चा होते, जब तब सुना करता था। तब मैं सोच रहा होता था कि रहने दो सबकी रूचि उसमें, आखिर में तो सुदर्शना मेरी ही होनी है।

मैंने एक दिन इंस्टाग्राम में सुदर्शना की खोज की थी। सुदर्शना की आईडी मिल जाने पर मैंने, उसकी एक प्यारी तस्वीर डाउनलोड की थी। 

मैंने, कंप्यूटर एप्लीकेशन के प्रयोग से, उसके साथ अपनी तस्वीर मर्ज की थी। फिर हमारी सयुंक्त फोटो के तीन और संस्करण (Version) क्रिएट किए थे। इन तस्वीरों में क्रमशः, दूसरी में आज से 15 वर्ष बाद, तीसरी में 25 वर्ष बाद, और चौथी में 35 वर्ष बाद के, हम दोनों के लुक्स दर्शित हो रहे थे। 

फिर ऐसे तैयार, इन चारों तस्वीर के प्रिंट आउट लेकर मैंने, लेमिनेशन करा लिए और उन्हें, घर में रख दिए थे। 

बाद के समय में कार्य प्रसंग में हुई सहज मुलाकातों में, हम दोनों करीब आए थे। अंत में, दस माह बाद सुदर्शना और मेरा विवाह हो गया। 

हनीमून के लिए हमने केरल के समुद्रतटीय नगरों में प्रवास किया। उसी बीच एक दोपहर मैंने, पूर्व में लेमिनेट की गईं वे तस्वीरें, सुदर्शना को दिखाईं और पूछा - सुदर्शना इसमें से देखकर बताओ कि तुम्हें, अपने साथ इनमें से किस रूप में मुझे देखना हमेशा पसंद होगा?

सहज प्रवृत्ति अनुरूप उसने, मेरे अभी के रूप वाली तस्वीर पर हाथ रखा था। तब मैंने कहा - अगर, तुम मेरा यह रूप ही देखना चाहोगी, बाद के रूप नहीं देखना चाहोगी तो मुझे, 4-5 वर्ष में ही मरना होगा। अन्यथा 4-5 वर्ष में मेरे मुखड़े की आभा, आगे निरंतर फीकी पड़ती चली जाएगी।   

सुदर्शना ने मेरे मुँह पर अपनी हथेली रखते हुए कहा - नहीं, मनोहर ऐसा अशुभ नहीं कहते। 

तब मैंने, उसे पुनः वे तस्वीरें बताते हुए पूछा - हाँ अब कहो, अब बाकी 3 में से कौनसा मेरा रूप देखना, तुम सहन कर पाओगी? 

सुदर्शना ने हँसते हुए सभी फोटो समेट कर एक ओर रखते हुए कहा - मनोहर, तुम्हें उस रूप के लिए हमारी शक्लों का, 75 वर्ष बाद का संस्करण बनाना होगा। मैं विवाह की हीरक जयंती (Diamond Jubilee) के पूर्व तुमसे बिछुड़ना सहन नहीं कर पाऊँगी। 

मैं, खिसियाया हुआ सा हँसा था। सुदर्शना ने मुझे भगवान के द्वारा कहे गए, शेष 3 डायलाग मारने के अवसर नहीं दिए थे। 

तब समुद्र तट पर चल रही, शीतल जल समीर में मैंने, सुदर्शना को प्यार से अपनी बाँहों में ले लिया था। जब सुदर्शना, मेरी बाँहों में होने की मधुर अनुभूतियों में आनंदविभोर हो रही थी, तब मैं सोच रहा था कि ‘सुंदरता और साथ’ को लेकर, पत्नी का मन कम चंचल होता है। वह, ‘अधिक सुन्दर’ या ‘अधिक अच्छे’ साथ के लिए, भटकना पसंद नहीं करती है। इसलिए पतिव्रता होने में उसे कठिनाई नहीं होती है। 

कुछ मिनटों तक मेरे आलिंगन में रहते हुए ही सुदर्शना ने कहा था - मनोहर, हमें अपने रूप सौंदर्य के कम होते जाने की चिंता क्यों पालनी चाहिए। हममें जो भी शारीरिक कमी एवं परिवर्तन आएंगे वे हमारे परस्पर के साथ रहते हुए ही तो आएंगे। ऐसे रूप परिवर्तन, ना आप, मेरे और ना ही मैं, आपमें रोक सकूँगी। तब हमें ध्यान यह रखना होगा कि हम आपसी साथ को, इस तरह से जियें कि हमारे मन की सुंदरता क्रमशः निखार पाती चली जाए। 

तब मैं सोच रहा था - स्वयं को सबके बीच अच्छे बनाए रखने के लिए शारीरिक रूप के अपेक्षा, ‘मन सुंदर’ रखने का सुदर्शना का यह विचार ही, उपयुक्त है।   

घर लौटने के बाद मैंने एक चित्रकार से, हमारे 35 साल बाद के रूप वाली तस्वीर बड़े आकार में बनवा ली थी। फिर एक सीनरी की तरह, उसे बैठक कक्ष की वॉल पर लगा लिया था। 

इसे देखकर, हमारे परिचित, रिश्तेदार पूछा करते कि इस तस्वीर में आप दोनों से मिलते जुलते, ये लोग कौन हैं? 

इस पर सुदर्शना मुस्कुरा दिया करती थी। मैं उत्तर देता था - यह हम दोनों की ही, अब से 35 वर्ष के बाद की तस्वीर है। 

लोग चकित होकर इस आशय के प्रश्न करते - भला, इस तस्वीर को अभी दीवाल पर लगा लेने का औचित्य क्या है?

मैं कहता - समय निरंतर चलता जाएगा, हम लोगों के रूप, शक्ति आदि शिथिल होती चली जाएगी। इस क्रम में, तस्वीर को देखते हुए हम एक बात निरंतर अपने ध्यान में रखना चाहते हैं। 

लोग पूछते - कौनसी, बात?

इसका उत्तर सुदर्शना देती - 

वह बात यह है कि जब सभी को वृद्धावस्था में भी, सबका प्यारा होना पसंद है तब हमें, तन की नहीं, मन की सुंदरता को निखारने पर ध्यान देना चाहिए …                

(समाप्त)

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

21-09-2021                 

                     


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