Friday, February 4, 2022

पॉजिटिव वाइब्स (Positive vibes)

 

पॉजिटिव वाइब्स (Positive vibes)

यह घटना 16-17 वर्ष पूर्व की है। हम (अरविंद सर और मैं) ग्वालियर टूर के बाद महाकौशल एक्सप्रेस से जबलपुर लौट रहे थे। हम एसी 2 शयनयान में थे। सतना आने तक क्षितिज से ऊपर उदय होते, तब लालिमा का गोला बने सूर्य ने, नव प्रभात की नई किरणें बिखेरना आरंभ कर दिया था। सतना से जब ट्रेन रवाना हुई तो मुझे अपने बाजू के कूपे के सहयात्रियों की चर्चा स्पष्ट सुनाई पड़ने लगी थी। 

ये लोग थर्मस से चाय कॉफी एवं अपने साथ रखा नाश्ता करते हुए वार्तालाप कर रहे थे। इनमें शायद एक महिला एवं तीन पुरुष थे। मुझे, वार्तालाप में प्रयुक्त की जा रही सधी हुई भाषा और शब्द, अत्यंत सुंदर लग रहे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह समूह कदापि साहित्यकारों का था जो किसी संपन्न हुए कार्यक्रम के बाद या आगामी कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए यात्रा कर रहा था। 

इतने वर्ष हुए उनकी चर्चा का विषय एवं अंतर्वस्तु (Contents) का ध्यान मुझे नहीं रह गया है। मुझे सिर्फ यह स्मरण रह गया है कि जीवन में अपने आसपास वैसा वार्तालाप मुझे कम ही सुनने को मिला है। मुझे स्मरण है कि उनकी चर्चा से मेरी यात्रा अत्यंत सुखद लग रही थी। 

शीर्षक के रूप में मेरे लिखे शब्द अँग्रेजी के हैं। इनका प्रयोग लिखने, सुनने एवं देखने में अब आम हुआ है। आरंभ में मुझे इसका अर्थ ही नहीं पता था। तब मैंने गूगल करके इसका अर्थ पढ़ा-समझा था। 

लिखना न होगा कि उन साहित्यकारों की उस समय की चर्चा, ट्रेन के उस कोच में पॉजिटिव वाइब्स निर्मित कर रही थी। मुझे लगता है आज हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि पॉजिटिव वाइब्स (Which create positive emotion/thought vibrations), सकारात्मक भावना/विचार कंपन पैदा करने से सभी को सुखद लगते हैं। यह होते (जानते) हुए भी हम सकारात्मक भावना/विचार युक्त वातावरण कम ही देखते या औरों के लिए निर्मित कर पाते हैं।  

अब मैं मेरे अपने बारे में लिख रहा हूँ। गणित मेरा प्रिय विषय रहा है। अपने जीवन में मैंने अनेकों गणित लगाए हैं। गणित की शब्दावली (Terminology) में एक शब्द “मात्रा” (Limit) का बहुत प्रयोग होता है। 

जीवन में किस बात की कितनी मात्रा होनी चाहिए मैंने यह समझते हुए, लिमिट तय करना अपना स्वभाव बनाया है। मैं संतोषी प्राणी भी हूँ। इससे अब जब मुझे जीवन यापन के लिए आवश्यक एक ठीकठाक सी संपन्नता लगती है तब से मैं धन अर्जन के पीछे नहीं लगता हूँ।  

बहुत से काम हमसे हमारी बाध्यताएं कराती हैं। जब हमारे साथ बाध्यताएं नहीं होती हैं तब हम वह काम करना पसंद करते हैं जो हमारे साथ ही सब को आनंद देते हैं। 

हालांकि भाषा मेरा मुख्य पढ़ने का विषय नहीं रहा था। तब भी मेरा साहित्य के प्रति रुझान किशोर वय से ही रहा था। अब अपने इस शौक (Hobby) के लिए मैं समय लगाया करता हूँ। साहित्य लेखन मेरे शौक एवं जीवन उद्देश्य दोनों की पूर्ति करता है। 

मुझे सामाजिक वातावरण में पॉजिटिव वाइब्स की मात्रा कम लगती है। मैं अपने सृजित साहित्य में वे बातें लिखता हूँ जो पढ़ने वाले के हृदय/मन को पढ़ते समय पॉजिटिव वाइब्स प्रदान करती हैं। 

मैं हास्य-विनोद (Humor) पसंद करता हूँ मगर ऐसा हास्य-विनोद मेरे साहित्य में नहीं होता जो किसी कॉमेडी शो जैसा फूहड़ मनोरंजन (Cheap Entertainment) उपलब्ध कराता है। मेरे साहित्य के पाठक को कहानी में आवश्यक होने पर अच्छे एवं स्वस्थ हास परिहास (Healthy Humor) का आनंद मिलता है। 

धन उपार्जन के लक्ष्य से बनाई जाने वाली वेब सीरीज या सिनेमा जैसी हिंसा, गाली गलौज, क्रोध एवं प्रतिक्रिया की अधिकता एवं सेक्स चर्चा भी मेरे साहित्य में नहीं होती। ये सब इतनी ही मात्रा में होते हैं, जितनी एक सामान्य नागरिक, परिवार-समाज में अनुभव और देखा-सुना करता है। 

मेरे साहित्य में हर बात हो सकती है मगर उसकी मात्रा कितनी हो इस पर मैं पर्याप्त विचार देता हूँ। मेरा साहित्य इस लक्ष्य से निर्मित किया जाता है कि पाठक कोई कोई एक ही नहीं अपितु सर्व पक्ष को देख/समझ पाए। 

मैं सोचता हूँ वह कृति साहित्य नहीं हो सकती है, जो पाठक के मन में पॉजिटिव वेव्स का अनुभव उसके स्वयं के आनंद के लिए तथा उसके माध्यम से औरों का प्रदान करने की प्रेरणा का साधन (Cause) नहीं बनती है। 


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