Tuesday, September 7, 2021

सीजन 2 - मेरे पापा (8)…

 

सीजन 2 - मेरे पापा (8)…

मैं, गर्भवती होना चाहती थी इस दृष्टि से अभी जो हुआ था वह, हमारा मिलन अधूरा था। इस मिलन को सुशांत भी अधूरा मानते होंगे, मुझे नहीं लगता था। मेरी जैसी, अपने बच्चे के लिए उतावली शायद उन्हें नहीं थी। मुझे इन दिनों लगता रहा था कि यह अच्छी बात है जो हम दूर थे। दूर होने से अन्तःकरण की भावनाओं का पति-पत्नी का आपस में अनकहे समझ पाना संभव नहीं होता है। जबकि साथ रहने पर पति-पत्नी, वाणी से कहे बिना भी एक दूसरे के हृदय में चलती भावनाओं को समझ लेते हैं। 

अतः मेरी भावनाओं से अनभिज्ञ, प्रायः अब सुशांत कॉल में की जातीं बातों में, एलएसी पर तनाव में अपनी राफेल फाइटर जेट की उड़ानों के बारे में, उत्साह से बताया करते थे। वे कहते कि इन उड़ानों को देखकर दुश्मनों के हौसलें पस्त होते हैं। मैं हँसकर कहती कि आपकी यही उड़ानें, कभी युद्ध में हुईं तो मेरी आँखों की नींद और मन की शांति उड़ा देंगी। सुशांत मृदुता से कहते - 

रमणीक, तुम्हारी नींद और शांति हमेशा बनी रहेगी। हमारा कोई दुश्मन, हमसे सीधा युद्ध करने की भूल नहीं करेगा। 

ऐसे, दिन व्यतीत हो रहे थे। कभी मैं सोचती कि अपने अपने पति को लेकर अन्य  नागरिकों की पत्नियाँ भी क्या, यूँ चिंता और तनावों में रहती होंगी जैसी मैं, एक सैनिक की पत्नी!

मेरा मन कहता - हाँ, चाहे कोई सेना में नहीं हो फिर भी प्रत्येक व्यक्ति के जीवन पर आशंकित खतरे तो होते ही हैं। निश्चित ही सभी पत्नियां जो किसी भी कारण से कभी भी अपने पतिदेव से दूर रहतीं हैं, उन के मन में मेरे तरह की घबराहट तो होती ही होगी। तभी तो इतने व्रत उपवास वे, अपने पति के दीर्घायु होने के लिए करती हैं। 

इसी विचार श्रृंखला में मेरे मन में प्रश्न उठता कि - क्या सिर्फ पत्नियाँ, ऐसी चिंतित रहती हैं? क्या पति अपनी पत्नियों को लेकर चिंतित न रहते होंगे?

इस पर मेरा मन, मानव मनोविज्ञान का अनुमान करता था। फिर उत्तर देता - 

पुरुष, भावनात्मक रूप से, नारी से अधिक मजबूत होते हैं। अतः प्रत्यक्ष में वे ऐसी चिंता करते प्रतीत नहीं होते हैं मगर अपनी पत्नी की सुरक्षा को लेकर विचार हरेक पति के मन में निरंतर चलते रहते होंगे। तब ही तो वे, सारा जीवन पत्नी के सुख सुनिश्चित करने के लिए दुनिया में भटकते घूमते रहते हैं। वे, अपनी पत्नी के लिए एक बसेरा निर्मित करना चाहते हैं, जिसमें उनकी पत्नी रानी की तरह, सुख वैभव में रहते हुए सुरक्षित रहे। 

तब पति हृदय की सोचते हुए मुझे, सुशांत पर इतना प्यार आया कि मैंने, साइड टेबल पर रखी हमारी तस्वीर को उठाकर, पहले उसमें सुशांत को चूम लिया, फिर उसे अपने वक्ष से लगा लिया था।  

ऐसी ही अवस्था में, मेरे मन में एक और विचार आ गया कि उस दिन जब, इनकी फ्लाइट पर खतरा आया था, तब सुशांत क्या सोच रहे होंगे? मेरे मन ने उत्तर दिया - निश्चित ही वे कॉकपिट में जाते हुए, मेरे लिए ही, अपने प्राण बचा लेना चाहते रहे होंगे। 

फिर उस रात जब सुशांत का कॉल आया तो मैंने, उनसे पुष्टि के लिए यही पूछ लिया था। पतिदेव के मुख पर तब प्रेम भाव दृष्टिगोचर हुए थे। उन्होंने कहा - 

निकी, यह सच है कि तब मुझे अपने प्राण बचा लेने का विचार, सर्वप्रथम तुम्हारी सोचते हुए ही आया था। पीछे पापा, मम्मी और फिर विमान में सवार क्रू और यात्री थे। अपनी इसी भावना के कारण मैंने अपनी वाहवाही की चाह नहीं की थी। 

इनके इस उत्तर पर मैं बाद में, कई दिनों तक विचार करते रही थी। मैं सोचा करती, सुशांत कितने अलग और अच्छे व्यक्ति हैं जो अपने वास्तविक अधिकार से अधिक थोड़ा भी कुछ नहीं चाहते हैं। अन्यथा अनेकों ऐसे सेलिब्रिटीज हैं जो देश और समाज का कुछ भला नहीं करते हुए यह दिखाने में सफल होते हैं कि उनसे अधिक राष्ट्रनिष्ठ व्यक्ति दूसरा नहीं है। उनमें यही कामना दिखती है कि जैसे भी हो अधिकतम पैसा, प्रतिष्ठा और सुख उन्हें ही मिले। 

तब इससे मुझे गर्व होता था कि ऐसे साहसी, न्यायप्रिय और निर्दोष व्यक्ति, सुशांत मेरे जीवनसाथी हैं। मैं सोचती कि - 

नहीं चाह कि सबसे धनी व्यक्ति की 

मैं पत्नी कहलाऊँ!

नहीं चाह कि सबसे प्रसिद्ध पति की                         

मैं पत्नी समझी जाऊँ!!

जब जब जन्म मुझे दो भगवन 

मैं इनकी पत्नी होने का सौभाग्य पाऊँ!!!

पापा, मम्मी जी एवं सुशांत की संगत में मेरे विचार, नित दिन क्रमशः अधिक सकारात्मक हुए जाते प्रतीत होते थे। 

संतान अभिलाषी मैं अब, चाहते हुए भी कोई स्त्री गर्भवती क्यों नहीं हो पाती, नेट सर्फिंग करते हुए, इससे संबंधित पेज पढ़ने लगी थी। तब मुझे ओवुलेशन विषयक जानकारी हुई थी। अपने शरीर की तासीर समझने के लिए तब मैंने, (बेसल बॉडी टेम्परेचर समझने हेतु) हर सुबह बिस्तर छोड़ने के पहले तापमान लेकर नोट करना आरंभ किया था। 

तभी देश में कोरोना ने जोर पकड़ा था। मेरा ऑफिस बंद हो गया था। मुझे वर्क फ्रॉम होम करना होता था। इसी बीच सुशांत, अंबाला आ गए थे। एक दिन उन्होंने बताया कि वे अब डिफेंस कॉलोनी में एक आरामदेह घर में रहने लगे हैं। कुछ और व्यवस्था हो जाने पर वे, मुझे, मेरे वर्क फ्रॉम होम के दिनों में अपने साथ बुला लेंगें। 

मेरी जागी-सोई आँखों में मेरा पूर्व का सपना फिर चलने लगा था। यद्यपि मैं सोचती तो यह थी कि सुशांत आज ही मुझे अपने साथ रहने के लिए बुला लें, तब भी ऐसा उनसे कहती नहीं थी कि वे अनावश्यक परेशान न हो जाएं। 

ऐसे में इनकी बातों से जब मुझे ऐसा लगने लगा कि 3-4 दिनों में वे मुझे अंबाला आने के लिए कहने वाले हैं, तभी अपने एनजीओ से कोरोना पीड़ितों को सहायता करने में लगे, पापा कोरोना पॉजिटिव हो गए। उन्हें अस्पताल ले जाया गया था। साथ ही, मम्मी जी एवं मेरा भी टेस्ट सैंपल लिया गया था। मेरा टेस्ट तो नेगेटिव आया मगर मम्मी जी पॉजिटिव आईं थीं। उन्हें माइल्ड इन्फेक्शन था। उन्हें घर में आइसोलेशन में रहने के लिए कहा गया था। सुशांत, तब दिल्ली आना चाहते थे। मैंने मना किया कि मैं सब मैनेज कर लूँगी। मैं उन पर कोरोना का कोई खतरा देखना नहीं चाहती थी। 

हालांकि 15 दिनों में पापा स्वस्थ होकर घर आ गए थे, और मम्मी भी ठीक हो गईं थीं, मगर मेरे जीवन ने मुझे एक बार फिर बताया था - 

मैं (जीवन), किसी की कल्पना अनुरूप नहीं चलता हूँ। अपितु जैसे मैं चलता हूँ, मुझे जीने वाले को उससे सामंजस्य बनाना होता है। 

दिन व्यतीत होते जा रहे थे। सुशांत अब फिर व्यस्त हो गए थे। उनसे नियमित हो जाते कॉल ही मुझे अपने सपनों से, और कुछ समय समझौता कर लेने का आत्मबल प्रदान करते थे। तब एक दिन सुशांत ने बताया कि अब उन्हें एक बार फिर फ़्रांस जाना है। मैं न्यूज़ देखा करती थी। अतः मैंने उनके कहने के पहले कहा था - हाँ जी, मैं समझ रही हूँ राफेल की सेकंड बैच आनी है। 

सुशांत ने कहा था - मैं जानता हूँ मेरी वाइफ ब्यूटीफुल ही नहीं स्मार्ट भी है। 

मैं मुस्कुराने लगी थी। वीडियो कॉल में भी, पतिदेव मेरी वाणी से प्रकट (भ्रम) भाव में नहीं, बल्कि मेरी आँखें जो कह रहीं थीं, उस विरह भाव को भाँप रहे थे। मुझे खुश करने के लिए तब इन्होंने कहा - निकी, बस थोड़ा और धैर्य रखो। वहाँ से लौटते ही या तो मैं दिल्ली आऊँगा या तुम्हें ही अपने पास बुला लूँगा। 

मैंने झूठ कहा था - नहीं, कोई जल्दबाजी नहीं है, जब सभी के लिए सुविधाजनक होगा तब ही हम साथ होंगे। मुझे, पापा-मम्मी जी के साथ रहना भी अच्छा लगता है। 

यह सच तो था मगर पूर्ण सत्य नहीं, सुशांत के साथ बिना मेरा सुख अपूर्ण होता था। मैं ऐसा कहकर, सुशांत को अपने तरफ से निश्चिंत बस करना चाहती थी। वे चिंता में रहें मुझे यह भी तो गवारा नहीं था। फिर वे फ़्रांस चले गए थे। 

तब एक दिन मैंने, दीदी से मिलने जाने की इच्छा पापा-मम्मी जी से कही थी। दीदी गर्भवती हैं, इससे उनके गर्भस्थ शिशु पर कोई खतरा न बने इसके लिए तब, हम तीनों ने और मेरी मम्मी ने कोरोना से बचाव की अधिक सावधानियाँ रखना प्रारंभ कर दीं थीं।  

सुशांत जब फ्रांस से राफेल लेकर अंबाला वापस आए तब उनके मिशन में सफल होने की मुझे बहुत ख़ुशी हुई थी। जब इन्होंने कॉल पर पूछा - निकी, क्या अभी एक माह के लिए अंबाला आ सकती हो?

इनके साथ की मेरे मन में हार्दिक भावना होते हुए भी मैंने इनसे कहा - जी, अभी एक बार दीदी से मिलने जाने का मेरा मन हो रहा है। क्या मेरा 15 दिन बाद आना आपको पसंद होगा?

सुशांत तो एक अलग तरह के व्यक्ति थे। इन्हें अपनी खुशी से ज्यादा, मुझे, पापा-मम्मी जी एवं अपनी सेवाओं के माध्यम से देश को खुश देखना अधिक प्यारा था। सुशांत मेरे मन में क्या है शायद इसे समझने की कोशिश कर रहे थे। प्रकट में उन्होंने कहा - बिलकुल पसंद होगा। आपका मेरे साथ होना, अभी भी और कभी भी मुझे दुनिया की हर उपलब्धि से बड़ी उपलब्धि लगता है और सदा ही लगा करेगा। 

ऐसा ही मेरे साथ भी था मगर बीच के दो मासिक चक्र में लिए बेसल बॉडी टेम्परेचर के ग्रॉफ से मुझे, अपने ओवुलेशन के दिनों का पता चल गया था। अंबाला अभी जाना, मुझे अपने ओवुलेशन के समय की जानकारी होने से फलदायी नहीं लग रहा था। 

यह पक्का तो नहीं था मगर तब मुझे लग रहा था कि जैसे सुशांत, मेरी वाणी से नहीं, मेरे मन को पढ़कर मेरी भावना समझ रहे थे। फिर भी कुछ सोचकर वे चुप रहे थे। 

हम दीदी के घर पहुँचे थे। अब दीदी का वजन 8 किलो बढ़ चुका था। उनका पेट भी काफी दिखने लगा था। दीदी के गर्भ में बच्चा पूर्ण विकसित हो गया था। साथ ही दीदी के मुखड़े पर सुंदरता अधिक निखर आई थी। इन दोनों बातों से दीदी के लिए मेरा प्रेम द्विगुणित हुआ लग रहा था। मैं सोच रही थी काश! दीदी जैसी यह अवस्था शीघ्र ही मेरी हो जाए। 

दीदी बहुत प्रसन्न थीं। उन्होंने बताया - निकी, विवाह को चार वर्ष होने पर भी, हमारा कोई बच्चा नहीं था। इस बारे में रिश्तेदार, परिचितों में तरह तरह की बातें सुनकर मैं त्रस्त हुई थी। अब जब शिशु का आगमन तय हुआ है, मैं अत्यधिक प्रसन्न हूँ। 

तब चिढ़कर मैंने पूछा - दीदी, तुम्हारे होने वाले बच्चे के लिए, रिश्तेदार और परिचित, कुछ कर देने वाले हैं क्या? जब उन्हें इसके लिए कुछ करना नहीं तो व्यर्थ बातें करके विवाहित जोड़ों पर अनावश्यक मानसिक दबाव क्यों निर्मित करते हैं, ये लोग?  

दीदी हँसी थीं फिर कहा था - हमारे समाज में बिन पैसे के मनोरंजन के रूप में यह शगल अस्तित्व में होता है। अपने पर बीती का ध्यान रख, किसी युगल के निजी विषयों में हम व्यर्थ बातें नहीं करेंगें, हमें यह शपथ लेनी चाहिए। 

फिर मेरी मम्मी, दीदी के घर रुक गईं थीं। हम लौट आए थे। उस रात सुशांत से कॉल पर मैंने पूछा था - 

पतिदेव जी, एक बात बताइये कि आप जैसे सैनिकों की हम, पत्नियाँ और परिजन अपने पति, बेटे को मोर्चे पर होने से इतने तनाव और चिंता में रहते हैं। क्या दुश्मन के सैनिकों के पत्नी, परिजन नहीं होते हैं? वे ऐसे ही चिंतित नहीं रहते होंगे?

सुशांत ने कहा था - क्यों नहीं रहते होंगे, वास्तव में दुश्मन देशों के शासक एवं सरकार, अपनी विस्तारवादी, धार्मिक और कौमी महत्वाकांक्षाओं के लिए अपनी प्रजा और सैनिकों का प्रयोग कर उनके प्राण पर खतरा निर्मित करते हैं। ऐसा करते हुए उनकी सत्ता और वे तमाशबीन बने रहकर सुरक्षित रहते हैं। 

मैंने पूछा - क्या ऐसा ही भारतीय सरकार करती है?

इन्होंने उत्तर दिया - नहीं, भारत की सोच न तो विस्तारवादी है और न ही जबरन अपने धर्म के प्रसार की है। हम हमारी सीमाओं पर निर्मित दुश्मन के खतरों से बचाव के लिए लाचारी में लड़ते हैं। 

इनसे, यह मैंने समझा था। फिर मेरा तीसरे दिन अंबाला जाना तय किया गया था। पास दिख रहे मिलन संयोग से मैं बहुत प्रसन्न थी। 

उस रात मुझे मधुर स्वप्न आया था। मैंने देखा कि हमारी प्यारी छोटी सी एक बेटी है। वह सुशांत को अपनी बाल सुलभ मधुर वाणी में कह रही है - ‘मेरे पापा’ ….                                 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

07-09-2021

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