Friday, July 18, 2014

दार्शनिक

दार्शनिक
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एक दिन एक सामान्य -साधारण व्यक्ति अपने जीवन में साधारण रह जाने के कारण की खोज करने बैठा . उसे यह लगा कि उसे जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में तथा महत्वपूर्ण अवसरों पर क्या करना चाहिए था उसकी सही समझ ही नहीं रही थी । इस कारण वह भूल करता रहा था . कुछ समझ सही आई भी थी तो वह विलम्ब से आई थी जिससे आगे तो भूलें कम होने लगी थी । लेकिन उसकी श्रेणी "सामान्य -साधारण" से "सफल -महान " की... हो पाती उससे पहले जीवन पर मौत की परछाई झलकने लगी थी । अब श्रेणी परिवर्तन के लिये करना तो शेष बहुत था लेकिन जीवन शेष कम था।

एक अन्य दिन दूसरा सामान्य -साधारण (अर्पित) व्यक्ति के मन में विचार आया वह भूलें करता था इसलिए सफल -महान नहीं बन सका। लेकिन जो "सफल -महान" कहलाते हैं वे भी कितनी भूल करके भी "सफल -महान" श्रेणी में कैसे रहे आते हैं ?
क्या जीवन में भूलों का साधारण या महान हो जाने से कोई संबंध नहीं है ? या "सफल -महान" कहने /कहलाने के मानक त्रुटिपूर्ण हैं ?
प्रश्न के उत्तर खोजने के लिये उसने चर्चा एक दार्शनिक ( पागल सा दिखता व्यक्ति ) से छेड़ी।
 दार्शनिक ने कहा महान तो गलती नहीं करते ,मै तो कोई भूल नहीं करता। तुम किस "सफल -महान" की बात करते हो ?
अर्पित (सामान्य) ने कहा आप फिल्मों के अभिनेता को ले लो , अनेकों महान और सफल कहलाते हैं।
दार्शनिक - उनकी किस भूल की बात तुम करते हो ?
अर्पित - अनेकों हैं उदाहरण में दो , तीन ले लो ,
1. समाज दायित्वों को नहीं समझ रहे हैं, समाज को बुरे रास्ते पर जाने की दुष्प्रेरणा दे रहे हैं ,
2. इतना वैभव-धन जोड़ लिया अगली कई पीढ़ियाँ बैठ कर खा सकें , फिर भी तृष्णा जारी है , बूढ़े भी हो जाते हैं पर वैभव-धन ही लक्षित रहता है।
3. देश -समाज में आर्थिक अभावों में फुटपाथ पर जीवन संघर्ष करते लोग इन्हें नहीं दिखते हैं , जबकि इन महान के पास ऐसी संपत्ति जमा है , जिसका प्रयोग /आवश्यकता उनके जीवन में नहीं पढ़ने वाली है .

दार्शनिक सुनकर चुप हो गया , सोचने लगा उसके समक्ष खड़ा यह व्यक्ति कोई दार्शनिक सा है।

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