Wednesday, July 2, 2014

झुकी न्याय तुला

झुकी न्याय तुला
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कल पहली बार एक पक्ष बनकर एक न्यायालय में जाना हुआ। न्यायाधिकारी के आने में समय था अतः वहाँ प्रतीक्षा में बैठना पड़ा। निगाह गई आँखों पर पट्टी बंधी न्याय मूर्ति पर , जिसके हाथ का तुला शायद ऊपर चलते पंखे की हवा से एक ओर झुक रहा था।

लेखक मन को एक विचार मिल गया लिखने को।  हमारे सामाजिक वातावरण की हवा आज इस तरह प्रदूषित हुई है कि वह न्याय को प्रभावित कर दे रही है , और यह हवा न्याय को अपने दबाव से किसी पक्ष विशेष की ओर झुका दे रही है , जिस तरह चित्र में दर्शित तुला एक ओर झुक गई है।

चित्र की दर्शित तुला झुकने का संभवत एक कारण और हो सकता है कि न्याय की वह तुला ही दोषपूर्ण पूर्ण हो।  जैसा हम बहुत ही प्रकरणों में सुनते/ देखते हैं , किसी अपराध के दंड के संवैधानिक प्रावधान ही न्यायपूर्ण नहीं होने से उचित न्याय पीड़ित पक्ष को नहीं मिल पाता हैं । अर्थात न्यायाधीश को जिन नियमों में न्याय करना होता है वे ही दोषरहित नहीं होते हैं , इसलिए ठीक उसी भाँति जैसी दोषयुक्त तुला एक पक्ष में झुकती है वैसे ही दोषपूर्ण नियमों के कारण भी न्यायाधीश का न्याय, प्रकरण का उचित निराकरण करने में सक्षम नहीं होता हैं।

सामाजिक दूषित हवा , या दोषपूर्ण नियम से न्याय प्रभावित होना सामान्य बात हो जाने से न्याय तभी पुष्ट हो सकता है , जबकि हम प्रत्येक अपने ह्रदय में न्याय धारण करें और अपने पारिवारिक और सामाजिक आचरण और कर्म इस तरह से रखें कि हमारे द्वारा सप्रयास / अनायास दूसरे पर
अन्याय ना हो।

--राजेश जैन
03-07-2014

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