मनुष्य की मनुष्यता -धन से बड़ी
एक अधिकारी ने ग्रामीण अंचल के विभागीय दौरे से लौटते हुए एक घर की बाड़ी
में भुट्टे लगे देखे तो खरीदने की मंशा से घर का दरवाजा खटखटाया .दरवाजे
पर आयी महिला से उसने पूछा कि कुछ भुट्टे चाहिए हैं मिल जायेंगे
क्या?महिला ने झिझकते हुए बताया कि अभी बाड़ी कि पूजा नहीं हुयी है अतः अभी
भुट्टे नहीं तोड़े जा सकते हैं.फिर स्वयं ही कुछ सोचते हुए कहा ठहरिये और
अन्दर चली गयी .कुछ मिनट के बाद हाथ में 8 -10 भुट्टे लेकर आयी.अधिकारी ने
भुट्टे लिए और सोचते हुए कि शहर में ये 12 -15 रुपये में मिलेंगे , इनकी
बाड़ी कि पूजा नहीं होने पर भी मेरी बात का सम्मान रख इन्होने भुट्टे तोड़
ला दिए हैं महिला के तरफ 20 का नोट बढ़ाया .महिला ने लेने का कोई भाव ना
दिखाते हुए कहा पैसे ना दीजिये .भुट्टे आपके या मेरे बच्चे खायेंगे कोई
अंतर नहीं है एक ही बात है .अधिकारी ने एक बार और आग्रह किया फिर भी ना
कहे जाने पर महिला को हाथ जोड़ धन्यवाद कहा और वापस गाडी में बैठ रवाना हो
गया .
शहर तक के शेष रास्ते में वह सोच रहा
था मेरा गणितीय मूल्यांकन के तुलना में महिला का मानवीय मूल्यांकन ज्यादा
अच्छे ज्ञान का परिचायक है(जिसने अपरिचित के बच्चों की जिव्हा तृप्ति को
पारंपरिक पूजा जैसी ही पूजा मान भुट्टे तोड़ लिए हों.).सीधी सरल सी महिला की
मानसिक सम्रद्धता के आलोक में वह यह सोचने को विवश था कि में एक अधिकारी
और वह साधारण गृहणी बड़ा कौन है ? निश्चित ही वह महिला जो शायद स्कूल की
शिक्षा भी पूरी ना कर पाई हो.
अभी
भी आसपास में ऐसे उदहारण शेष द्रष्टव्य होते हैं जो दर्शाते हैं की
मनुष्य की मनुष्यता ,धन से बड़ी होती है. हम भी यह अनुकरण करें या कम से कम
ऐसी जीती जागती तस्वीरें मिट ना जाएँ इसके प्रयत्न अवश्य करें.
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