Saturday, April 21, 2012

आहत समाज के उपचार

आहत समाज के उपचार
         
                                                     कुछ समय पूर्व एक सुबह जब मैं टहलते समय घर की तरफ लौट रहा था तो रास्ते में एक लड़की (जो मेरी बेटियों के उम्र की होगी ) उसकी स्कूटी बिगड़ जाने पर उसे पैदल धकेलते ले जा रही थी.वहां से रेपैरिंग शॉप एक डेढ़ कि.मी. दूर थी मैंने  उससे  मदद की इक्छा प्रकट की तो वह संकोच के साथ मदद लेने तैयार हो गयी.लगभग उतनी ही गति से जितनी  में मैं घूमता हूँ  मैंने उसकी बिगड़ी गाड़ी धकेलते हुए सुधार की  दूकान तक पंहुचा दी.कुछ क़दमों के फासले पर चलते हुए पीछे वह दुकान पर पंहुची तो मैंने उससे कहा कि यहाँ वह गाड़ी सुधारवा ले उसने हामी में सिर  हिलाया मैं तब आगे बढ़ गया .कोई आधे कि.मी. मैं और चला होऊंगा तब मैंने देखा कि संक्षिप्त मार्ग से चलते हुए वह मेरे से आगे पुनः गाड़ी धकेलते हुए चली जा रही है.
                           
                                  मैंने उस बिटिया कि कमजोर शक्ति भांपते हुए उसकी मदद करने कि जो कोशिश कि थी वह शायद नाकाफी थी .गाड़ी ठीक करवाने के लिए शायद पर्याप्त पैसे उसके पास ना रहे होंगे.मुझे इस विचार से अत्यंत करुणा अनुभव हुयी . फिर भी इस  बात की तसल्ली हुयी कि उसके गाड़ी धकेलने के मानलो 4 कि. मी. के मार्ग में मैंने डेढ़ कि.मी. का सहारा दिया.इसके लिए मुझे कोई अतिरिक्त समय भी नहीं देना पड़ा था.मैं शायद आर्थिक मदद भी उसकी कर सकता था लेकिन इसमें मेरा संकोच और उसका स्वाभिमान आड़े आया जिसने हमें इस चर्चा से रोक दिया था.लेकिन वगैर आर्थिक व्यय के हम कुछ हद तक जिसमें हमें  अतिरिक्त समय भी नहीं देना है कमजोर जरूरतमंद की मदद कर ही सकते हैं.यहाँ हमें आत्मविश्वास का परिचय देना होता है .हमें इस बात से बेपरवाह होना होता है कि देखने वाले इसे किस रूप में देखते हैं.हमारा उद्देश्य पवित्र है तो किसी के किसी भी तरह की टिप्पणियों से अप्रभावित रहना है.हमारी उस बेटी ने बाद में यदि सोचा होगा तो मेरा आभार ही माना होगा.

                                    हमारी आर्थिक हैसियत होती है कुछ तरह के कार्य करने का हम समय नहीं निकाल पाते.तब आजीविका के लिए संघर्ष करते लोगों से मेहनताना के एवज में हम ऐसे कार्य उनसे करवा लेते हैं.मेरी ज़िन्दगी में ऐसे मौके आये हैं जब सम्पर्क  में रहे ऐसे गरीबों ने मेरे या मेरे घर के कार्य दूसरों के अपेक्षा कम मेहनताना पर करना उचित माना.हमारे घर में सबने और मैंने यह सदैव ध्यान रखा है की किसी लाचार -गरीब के साथ भी हम यथोचित सम्मान से पेश आयें.हमारा अपना छोटा बच्चा भी हमसे एक सम्मान की अपेक्षा करता है. जब हम उसे यह नहीं देते तो वह चिढ़ता -मचलता है.फिर वह गरीब तो शायद हमारी उम्र का ,हमसे बड़ा या कुछ ही हमसे छोटा होता है .हम यदि अपने बच्चे जितने सम्मान भाव से भी यदि उससे व्यवहार करें तो गरीब जो आपके कार्य में सहायता करता है (भले ही पैसे लेकर) उसके स्वाभिमान को ठेस नहीं लगेगी.दुनिया तो अब ऐसी है कि आप 1 वक़्त कि उदरपूर्ति पर 10 रुपये से 10000 रुपये भी व्यय कर सकते हैं.छोटे कार्य करने वाला ईमानदार गरीब तो 10 रुपये मैं पेट भर लेगा और रात में परिश्रम से थक बेसुध हो सो लेगा . लेकिन हमें अत्यंत असुविधा होगी जब हमारे लिए इस तरह कार्य (जिनके लिए हमारी व्यस्तता में हमें सामय नहीं होता) ना मिलेगा .हम इन से यथोचित सम्मान से पेश आवें . उनका कर्म  हीन  नज़र से जरुर देखा जाता है पर हमारी मूल आवश्यकताओं को वे ही निभा देते हैं.

                                     समाज हमारे इस अभिमानी व्यवहार से आहत होता है.उसके शरीर पर ढेरों घाव लगे हैं,हम करुणामयी विचार रखते हुए ,सम्मान देते हुए आसपास के मानवों से व्यवहार कर पायें तो समाज के बाह्य ज़ख्म पर मलहम ही लगेगी.उसकी इस चिकित्सा से जब इसे आराम लगेगा तो समाज कि पीड़ित आत्मा शान्ति पायेगी.

                                       "दूर सुदूर में फिर हमें एक शांत ,सुरक्षित समाज का सपना साकार होता द्रष्टव्य होगा."

No comments:

Post a Comment