Wednesday, July 14, 2021

मेधा …

 

मेधा … 

मैं यह सुनती हुई अब 12 वर्ष की हुई थी कि मैं अपनी मम्मी की कॉपी हूँ। जब छह सात की हुई तब मुझे कॉपी क्या होती है, समझ में आना आरंभ हुआ था। तब मैं मिरर के सामने जब मम्मी के साथ होती तो मुझे, ऐसे कहे जाने में सत्यता का पता चल गया था। मैं मम्मी का मुखड़ा देखकर तुलना स्वयं से करती तो मुझे पता चल जाता कि मेरा मुख, उनके मुख का नया और छोटा संस्करण है। 

मैं कुछ और बड़ी हुई तो जो सुन्दर शब्द सुना करती थी उसका अर्थ मुझे समझ आने लगा था। और मुझे यह अहसास करके ख़ुशी मिलती कि मैं मम्मी की कॉपी हूँ और चूँकि मेरी मम्मी अत्यंत रूपवान हैं इसलिए मैं भी रूपवान लड़की हूँ। 

पिछले दो तीन वर्षों से अपने रिश्ते, परिचित तथा साथी लोगों से मुझे मेरे रूप की प्रशंसा सुनने मिलती तो मुझे गर्व होता था। 

आज मैंने अपने इसी गर्व बोध की चर्चा मम्मी से करते हुए कहा था - मम्मी, कितनी अच्छी बात है आप इतनी सुन्दर हो और आप की बेटी होने से आप जैसा रूप मुझे भी मिला है। 

मम्मी उस समय मोबाइल पर कुछ पढ़ रहीं थीं। पता नहीं उनका मूड कुछ ठीक नहीं था। उन्होंने कहा - मेधा, यह अच्छी बात भी है और बुरी बात भी है। 

मुझे सुंदरता को बुरी बात कहा जाना समझ नहीं आया था। मैंने पूछा - मम्मी, जब सुंदरता को सब पसंद करते हैं और उसकी तारीफ़ करते हैं तो सुन्दर होना बुरी बात कैसे होती है?

मम्मी ने कहा - बेटी, अब तुम टीनेजर (Teener) होने जा रही हो। जल्दी समझने लगोगी कि जब कोई लड़की सुन्दर होती है तो सब उसकी सुंदरता देखते हैं। उस पर आकर्षित होते हैं। 

मैंने कहा - हाँ, मम्मी यह तो मैं अभी ही अनुभव करने लगी हूँ। मुझे यह अच्छा भी लगता है। 

मम्मी ने कहा - कुछ बड़ी होने पर तुम्हें, तुम्हारी यह सुंदरता कभी कभी बुरी भी लगा करेगी। जब तुम देख और समझने लगोगी कि तुम्हारे आस पास के लोग-लड़कों को सिर्फ तुम्हारी सुंदरता से लेना देना है। जब उनके बीच होने पर तुम्हें लगेगा कि उनमें से अधिकांश, की दृष्टि तुम्हारे रूप को देखने तक पर सीमित हो जाती है। वे देख नहीं पाते हैं कि इस रूप-लावण्य युक्त तन के अंदर, एक मन भी है उसमें कुछ उत्कंठा हैं कुछ अभिलाषाएं हैं, लड़की के मन में कुछ महत्वाकांक्षाएं हैं साथ ही लड़की का कोई स्वाभिमान भी होता है। 

मैं समझने का प्रयास कर रही थी। मगर मुझे कुछ विशेष समझ नहीं आ रहा था। मैं स्कूल में पढ़ती थी अतः मुझे लगा था मम्मी ने अब तक मेरे पढ़े गए से अधिक पढ़ा है इसलिए यह जानती हैं। मैंने कहा था - 

मम्मी, ऐसा भी कुछ हो सकता है मुझे तो समझ ही नहीं पड़ता है। तुम कैसे यह समझ पाई हो? क्या आगे की क्लास में यह सब पढ़ाया जाता है। 

मम्मी ने मुझे, अपने सीने से लगाया था। फिर मेरे ललाट पर चुम्मी ली थी। उनके द्वारा यह सब करते हुए भी मुझे लग रहा था कि वे अनमनी हैं। उन्होंने एक आह सी भरते हुए कहा था - 

मेधा, यह स्कूल या किसी कॉलेज की क्लास में नहीं पढ़ाया जाएगा। यह पाठ जीवन की क्लास में, मैंने पढ़ा और समझा है। तुम भी इसे वहीं से पढ़ सकोगी। 

मुझे कुछ समझ आया था। मैंने मम्मी का मूड ठीक करने के लिए कहा - 

मम्मी, आपकी पढ़ाई अधिक है आप अधिक जानती हैं। जैसे टीचर के अधिक जानने के कारण मैं उनकी क्लास में पढ़ती हूँ ऐसे ही जीवन के बारे में आपका ज्ञान अधिक है। इस पाठ को समझने के लिए क्या मैं आपसे ट्यूशन लिया करूं? कैसा है यह मेरा आईडिया?

मेरा प्रयास सफल हुआ था। मेरी बात पर मम्मी खिलखिला कर हँसी थीं। फिर से उन्होंने मेरे गालों पर पड़ते सुन्दर डिम्पल को किस किया था। और बोलीं थीं - आहा, वाह मेरी बेटी सिर्फ सुन्दर ही नहीं जीनियस भी है। 

मैंने भोली सी शक्ल बनाई थी। अपने भोलेपन में मैंने प्रश्न किया था - 

मम्मी, मेरी सुंदरता पर प्रशंसा से मुझे खुश नहीं होना चाहिए यह तो समझ गईं हूँ पर क्या आपने मुझे जीनियस कहा है इस प्रशंसा से मुझे खुश होना चाहिए?

मम्मी ने कहा - मेधा इससे ना सिर्फ तुम्हें खुश होना चाहिए अपितु हम सबको, तुम्हारे पापा को भी खुश होना चाहिए। 

मैं हँसी थी कहा था - थैंक यू मम्मी। 

मम्मी ने कहा था - तुम मुझसे जो ट्यूशन लोगी उसमें मैं, तुम्हें यह भी बतलाऊँगी कि किस की और कैसी प्रशंसा पर तुम्हें खुश होना चाहिए और किसकी प्रशंसा के पीछे के आशय को पहचान कर, उस पर प्रसन्न होने की जगह, सतर्क होना चाहिए। 

मैंने पूछ लिया - मम्मी, आप मुझे ट्यूशन देना कब से शुरू करोगी। 

मम्मी ने कहा - मेधा, तुम समझ नहीं सकी हो। मैंने, यह ट्यूशन तो तुम्हारे जन्म से ही जारी रखी है। यह जो अभी हम में हो रहा है यह भी ट्यूशन है। अब जब तुम किशोरवय में प्रवेश कर रही हो तो अब से मैं आज जैसे कठिन पाठ भी इसमें लेना, समझाना शुरू करुँगी। 

इस बार मैंने मम्मी के सुंदर ओंठों पर हल्के से किस किया था। और कहा - मम्मी, प्रॉमिस आपकी यह जीनियस बेटी, यह पाठ आपसे ही पढ़ा करेगी। 

मम्मी ने कहा - बिलकुल बेटी। जब पाठ और कठिन हो जाएंगे तब मैं, तुम्हारे पापा की भी सहायता लिया करुँगी।  

मैंने कहा - हाँ, मम्मी मेरे डिअर पापा भी तो मेरे आदर्श हैं। 

फिर मम्मी अपने लैपटॉप पर (शायद ऑफिस के) काम में लग गईं थी। और मैं टीचर का दिया होम असाइनमेंट करने लगी थी।   

(बड़ी होती बेटी को जीवन दर्शन प्रदान करती माँ, यह आज लिखना आरंभ की गई मेरी नई उपन्यास का विषयवस्तु है) 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

14-07-2021

 


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