मेधा (2) …
मम्मी ने कहा - तुम यह तो जानती ही हो की मौसी मुझसे बड़ी एवं मैं, तुम्हारे नाना नानी की छोटी बेटी हूँ।
मैंने कहा - जी, मम्मी।
मम्मी ने आगे कहना आरंभ किया - यह मुझे बाद में पता चला था कि ‘जब मेरा जन्म होने वाला था तब घर में एक बेटी होने से सब यह चाहते थे कि तुम्हारी नानी का अब बेटा पैदा हो’।
मैंने कहा - हाँ, मम्मी सब ऐसा चाहते थे तो इसमें गलत क्या था। मुझे भी लगता है कि यदि हमारे यहाँ भी मुझसे छोटा कोई आता तो उसका भाई होना ही मुझे भी पसंद आता।
मम्मी ने कहा -
अपनी छोटी समझ और तुम्हारी अपनी इच्छा में ऐसा होना कोई गलत बात तो नहीं है। मगर तुम मेरी सोचो कि जब सब चाहते थे बेटा हो ऐसे में मेरा बेटी जन्मना यह बात सबके लिए कितनी कटु हुई थी। बड़े होने पर जिस दिन मुझे यह सब पता चला तो मैं बहुत रोई थी कि मैं अपने दादा, दादी, पापा और मम्मी की अवाँछित (Unwanted) बेटी हूँ।
मैंने कहा - ओह्ह, आई सी! फिर तो सबसे जितना लाड़ प्यार, मुझे मिलता है उतना आपको नहीं मिला होगा।
मम्मी ने बताया - मेधा, ऐसा भी नहीं था। अपने बच्चे तो मम्मी पापा को प्रिय होते हैं। मुझे भी प्यार मिलने लगा था। बस मुझे यह बात बुरी लगती थी कि घर के बड़ों की लड़के की मन्नत होने पर, मैंने आकर उसे अधूरी रहने दिया था। दादा-दादी ने तब मेरी मम्मी, तुम्हारी नानी से यह चाहा था कि वे तीसरी संतान, बेटा पैदा करें।
मैंने कहा - मम्मी, फिर यह क्यों नहीं हो पाया। आपके कोई भाई तो हैं, नहीं।
मम्मी ने बताया -
मेरे पापा प्रगतिशील आधुनिक विचार के थे। उन्होंने तीसरा बच्चा करना, जनसंख्या की दृष्टि से मातृ भूमि से अन्याय करने का अपराध जैसा माना था। तब मेरी दादी ने उनसे कहा था, ‘तुम्हारा एक बेटा हो जाए तो मैं शांति से परलोक जा सकूँ’। इस पर उन्हें पापा ने कह दिया था, बेटा ही हो इसकी संभावना 50% की है ऐसे में तीसरी भी बेटी हुई तब? इस पर उनकी माँ ने कहा था मैं तीर्थ धाम की यात्रा कर आती हूँ तब लड़का ही होगा। पापा ने मना कर दिया था कि माँ इस बात के लिए धाम की यात्रा से कुछ नहीं होगा। विज्ञान के अनुसार इसमें माँ-पिता भी कुछ नहीं कर सकते हैं।
मैं सोचने लगी थी कि जन्मने वाला बच्चा लड़का या लड़की कैसे तय होता है। मुझे सोच में पड़ा देखकर मम्मी ने कहा -
बड़ी कक्षाओं में बच्चे के जन्मने की पूरी प्रक्रिया तुम्हें जीव विज्ञान में पढ़ने मिलेगी। तब तुम्हें पता चलेगा कि गर्भ स्थापना के पल में होने वाले प्राकृतिक संयोग से बच्चे का लिंग स्वतः ही तय होता है। पूजा पाठ या अन्य कोई बात इसे प्रभावित नहीं करती है।
मैं चाह रही थी कि अभी मम्मी ही मुझे यह बताएं तो अच्छा हो, फिर मैंने स्वयं को समझाया कि मम्मी यदि मुझे अभी बताना उचित नहीं समझती हैं तो मुझे कोई जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए। विश्वास करना चाहिए कि मित्र मम्मी, यदि नहीं बता रही हैं तो अभी इसमें ही मेरी भलाई होगी। फिर मैंने अपनी मम्मी की यह बात जानने के बाद की मनोदशा की कल्पना की और पूछा -
आप, मेरी इतनी सुंदर मम्मी तो फिर मन ही मन दुखी रहती होगी कि आपके होने से घर में बेटे की आस पूर्ण नहीं हुई।
मम्मी ने बताया -
हाँ मेधा, यह सच है। मेरे लालन पालन में कोई कमी नहीं होने पर भी मुझे शिकायत समाज संरचना से रहती थी कि प्रकृति से प्रदत्त समान महत्व की मनुष्य होने पर भी, मानव निर्मित परंपरा और संस्कृति में नारी को पुरुष से इस तरह से हीन क्यों माना जाता है कि कोई माँ, खुद एक नारी भी अपनी संतान का बेटी नहीं बेटा होने की कामना को विवश होती है।
मुझे जितना कुछ समझ आया था उस आधार पर मैंने पूछ लिया -
मम्मी, क्या आप यह बताना चाह रही हैं कि मैं भी आपकी बेटी की जगह बेटा होती तो आपको अच्छा लगता? ....
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
27-07-2021
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