Friday, December 4, 2020

रूपवान - उ.प्र. सिनेमा ..

 रूपवान - उ.प्र. सिनेमा .. 

(पिछले भाग से आगे)


अगली शाम, सृष्टि प्रसन्नचित्त थी। हम शाम की कॉफी, साथ ले रहे थे। वह कल की घटना की कडुआहट से उबर चुकी थी। तब कल की अधूरी रह गई चर्चा मैंने ही छेड़ी - 

सृष्टि, कल तुमने बहुत सुंदर गीत मुझे बताया था। इस गीत की एक एक पंक्ति बेहद खूबसूरती से लिखी है, इसके लिखने वाले ने!

सृष्टि ने इस पर कहा - 

हाँ, अपने समय में यह, खूब पसंद भी किया गया था। आज भी सभी सुनने वालों को यह को सुंदर लगता है। मगर मुझे लगता है कि गीतकार ने इसे लिखते समय, समाज इसे किस रूप में ग्रहण करेगा, इस पर ध्यान नहीं दिया है। समाज दृष्टि से मुझे, इस की कुछ पंक्तियां ठीक नहीं लगती हैं। 

मैंने पूछा - मैं, नहीं समझ सका हूँ। ऐसा क्या है, इस प्यारे गीत में?

सृष्टि ने उत्तर में कहा - 

इसमें कहा गया है कि प्यार में कोई उम्र एवं जाति का बंधन नहीं होना चाहिए। प्यार करने वाले के लिए, मन की सुंदरता ही प्रमुख होना चाहिए। 

मैं यह मानती हूँ कि हाँ!, ठीक है। प्यार, पापा-बेटी, माँ-बेटे वाला भी होता है जिसमें, उम्र का बंधन नहीं होता है। मगर मेरा मानना है कि हर तरह का प्यार, उम्र की सीमा से मुक्त नहीं हो सकता है।   

सोचते हुए तब मैं, सिर्फ यही कह सका - 

सृष्टि, मैं नहीं समझ पा रहा हूँ कि समस्या क्या है? साथ ही इसका, कल की हमारी चर्चा से, क्या संबंध है?

सृष्टि ने तब उलटा प्रश्न किया - 

आप, मुझे बताओ, आपने कितने ऐसे वैध-अवैध रिश्ते सुने देखे हैं जिसमें कोई स्त्री पचास वर्ष की है और उसका प्रेमी 20-25 वर्ष का है?

मैंने सोचते हुए कहा - कुछ विरले ही सुने हैं। 

सृष्टि ने अब कहा -  

अब सोच कर बताइए कि कितने ऐसे वैध-अवैध रिश्ते आपने, सुने-देखे हैं जिसमें कोई आदमी पचास वर्ष का है और उसकी प्रेमिका 20-25 वर्ष की है?

मैंने कहा - पहले प्रकार के जोड़े से निश्चित ही ऐसे जोड़े, बहुत ज्यादा देखे सुने हैं। 

सृष्टि ने तब पूछा - इसका कारण क्या है, सोचा है कभी आपने?

मुझे लगा मैं, सृष्टि की पूछी जा रही पहेली समझ नहीं पा रहा हूँ। पराजित भाव से मैंने कहा - सृष्टि, तुम ही बताओ?

सृष्टि ने समझाने वाली मुद्रा में तब कहा - 

हमारी संस्कृति नारी को, वह दृष्टि प्रदान करती है जिसमें प्रौढ़ होने पर, अपने आसपास सभी लड़कों को वह, अपने बेटे जैसी ममता से देखती है। ऐसे ही पहले हमारे प्रौढ़ (या वृध्द) पुरुष भी होते थे जो, लड़कियों को बेटी की दृष्टि से देखते थे। 

इस पर मैंने पूछा - अब ऐसा कम क्यों होते जा रहा है? पुरुष दृष्टि में बदलाव क्यों आया है? 

सृष्टि ने कहा - 

सभी पुरुष ऐसे ही होते हैं, यह अन्यायपूर्ण कथन तो मैं नहीं करूंगी। प्रौढ़ पुरुष में मेरे एवं आपके पापा तथा अन्य निकट के रिश्तेदार भी शामिल हैं। 

फिर भी यह कहने में मैं, नहीं हिचकूंगी बहुत से प्रौढ़ पुरुषों की दृष्टि सिनेमा ने ख़राब कर दी है। सिनेमा ने प्रत्यक्ष रूप से दृष्टि ख़राब करने वाले गीत के साथ बहुत कामोत्तेजक दृश्य दिए हैं। यद्यपि यह गीत, उनसे बेहतर है मगर इस गीत में जैसा कहा गया है -

 “ना उम्र की सीमा हो - ना जन्म का हो बंधन” 

इन पँक्ति से बहुत से प्रौढ़ हुए पुरुष, अपनी युवा समय की रसिक मिजाजी को याद कर लेते हैं। ऐसे गीतों एवं कामुक सिने दृश्य से दुष्प्रेरित होकर वे, जाति और उम्र का भेद भुला कर किसी भी लड़की/युवती की कल्पना अपनी प्रेमिका के रूप में करने लगते हैं।

तब सार्वजनिक स्थलों पर ऐसा दृश्य देखने में आता है, जैसा मेरे साथ कल मेट्रो के सफर में उपस्थित हुआ था। शायद उसे, आप ने भी अनुभव किया था। 

सृष्टि की इस विवेचना से वह क्या कहना चाहती है मैं, समझ गया था। तब पुरुष होने से मैंने, अपराध बोध अनुभव किया था। मैंने कमजोर स्वर में प्रश्न किया - 

सृष्टि, आप क्या सोचती हो कि सिनेमा ऐसी अप-संस्कृति क्यों प्रसारित करता है?

सृष्टि ने उत्तर दिया - 

एक सामान्य मानव प्रवृत्ति होती है कि कोई व्यक्ति जब ख़राब करनी करता है तब वह, उसे ख़राब मानने की जगह, उसे अच्छा दिखाने के बहाने खोजता है। 

ऐसा ही हमारे सिनेमा वालों के साथ होता है। आपने देखा होगा कि किसी भी मूवी में पचास साल की किसी नायिका के सामने 20-25 वर्ष का नायक काम नहीं करता है। इसके उलट प्रौढ़ नायक की नायिका, अवश्य इस उम्र या इस से कुछ अधिक की देखी जा सकती है। क्योंकि ऐसी सहनायिका को लेकर प्रौढ़ (पुरुष) कास्टिंग काउच, अपने लिए अवसर देखता है। 

कास्टिंग काउच, मधुर गीत-संगीत के माध्यम से आवरण देकर अपनी नीच करनी को, चालाकी से सामाजिक अनुमोदन दिला लेता है। इस गीत को गुनगुनाते हुए एक समाज धारणा बन जाती है कि उम्र की सीमा नहीं होती है, प्यार केवल मन देखता है। 

वास्तव में ऐसे अति विलासी प्रौढ़ (या वृध्द) पुरुष की करनी, कथनी से उलट होती है। वह मन नहीं केवल नारी तन देखता है। प्रौढ़ पुरुष का लड़की से कथित प्रेम, प्यार नहीं सिर्फ वासना होती है। 

यह अप-संस्कृति सिनेमा से ग्रहण करके प्रौढ़ या वृध्द हो रहा पुरुष, अपनी इस अवस्था की भूमिका समझने का प्रयास नहीं करता है।  

इस पर मैंने कहा - 

सृष्टि, तब तो हमारी संस्कृति अधिक खतरे में पड़ती दिखाई दे रही है। अब सुन रहे हैं कि हिंदी सिनेमा का विस्तार किये जाने का प्रयास चल रहा है। अब मुंबई के साथ सिने-इंडस्ट्री, उ.प्र. में भी लाई जा रहा है। 

सृष्टि ने कहा - 

हाँ सुना मैंने भी यही है। हमें आशा करना चाहिए कि उ.प्र. में आकर सिनेमा, गंगा से धुलकर पवित्र हो सकेगा। जिससे अंडरवर्ल्ड प्रायोजित, मुंबई सिनेमा की अपसंस्कृति यहां ना आने पाएगी। 

यहाँ से बनने वाली मूवी, हमारे परंपरागत सांस्कृतिक मंच से प्रसारित होने वाली समाज प्रेरणा की परंपरा पर चलकर, देश और समाज में भाईचारा एवं नारी गरिमा एवं सम्मान की प्रेरणा प्रसारित किया करेगी … 

(समाप्त)

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

04 -12-2020

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