Tuesday, December 22, 2020

काश! काश! काश! (6)...

 काश! काश! काश! (6)...

नेहा जी ने कहा - यह बहुत अच्छा रहा, आप मिल गई हैं। मैं, आजकल बहुत परेशान चल रही हूँ। मन में दुःख का गुबार लिए बैठी हूँ। चाहती थी कोई अपना मिल जाए जिससे, अपनी पीड़ा कह कर कुछ हल्की हो सकूँ। 

वह कह चुकी तो मैं सोचने लगी क्या हो सकती है नेहा जी कि पीड़ा? यदि नवीन ने, मेरे साथ किये की सच्चाई, नेहा जी को बताई होती तो ये, अपने पति के किये पर शर्मिंदा होकर, खेद या माफ़ी से बात शुरू करतीं। मैंने पूछा - 

आपने, मुझे ऐसा अपना एवं हितैषी माना है कि जो आप, किसी से नहीं कह सकती वह मुझसे कह रहीं हैं, इसके लिए मैं आभारी हूँ। आप बताएं, क्या बात आपको परेशान कर रही है? मुझसे, आपकी परेशानी दूर करने के लिए जो बन सकेगा वह करने में मुझे ख़ुशी होगी। 

नेहा जी ने बिना लाग-लपेट के सीधे कहना शुरू किया - 

यह कोई 15 दिन पहले की बात है। नवीन, ऑफिस से रात देर घर आये तब व्यथित थे। उन्होंने, मुझे बताया कि एक कुलीग की लिफ्ट मांगने पर वे, अपनी बाइक पर उसे बिठाकर छोड़ने जा रहे थे। तब रास्ते में, उस कुलीग ने बाइक पर नवीन से बहुत चिपटा-चिपटी की थी। मैं, उनकी बात का उसी दिन भरोसा नहीं कर पाई थी। फिर मैं, पिछले 15 दिनों में नवीन की मनःस्थिति देखती रही हूँ। नवीन को देख कर मुझे संदेह नहीं रहा कि उन्होंने मुझे झूठ बताया है। जबकि सच कुछ और है। 

फिर चुप होकर नेहा जी मुझे देखने लगीं। मैं, नवीन की मक्कारी से आहत हुई थी। नेहा जी से अपने मनोभाव छुपाने की मैंने, असफल कोशिश की  थी। 

तब नेहा जी ने आगे कहा - 

आज आपको, यहां देख मुझे आशा बंधी है कि आप, सच क्या है? यह जानने में मेरी सहायता कर सकती हैं। आप और नवीन, ऑफिस में साथ ही काम करते हैं। हो सकता है कि उसके साथ, जो कुछ हुआ है उसे लेकर, वहाँ ऑफिस में कोई चर्चा रही हो जिसे आप भी जानती हो। 

यह नवीन की दोहरी मक्कारी थी। उसने मेरी गरिमा को क्षति पहुंचाई ही थी। मेरा विश्वास भी तोड़ा था। फिर घटना को अपने तक सीमित नहीं रखकर, अपने को निर्दोष बताने की चेष्टा करते हुए नेहा जी को, सफेद झूठ गढ़ कर सुना दिया था। वहाँ भी वह असफल ही रहा, उसकी पत्नी ही उसकी बात को सच मान नहीं सकी थी। 

यह, नवीन कैसा कापुरुष है? कामुकता वशीभूत हुई भूल स्वीकार करने के नैतिक साहस के अभाव में नवीन ने दो-दो स्त्रियों से छल किया है। क्षुब्ध हुई मैं, भूल गई कि ऋषभ ने मुझसे, नेहा जी के सामने इस तरह से पेश आने को कहा था कि जैसे मेरे साथ, नवीन ने कुछ किया ही नहीं है।  

ऋषभ और मैंने, उस रात यह तय किया था कि नेहा जी को सच बताकर, हमें, उनकी और बच्चों की खुशियों को प्रभावित नहीं करना है। मेरे नहीं बताने पर भी मगर, नेहा जी की खुशियाँ प्रभावित हो गई थीं। साफ़ था कि किसी का कुछ गलत करना, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कई व्यक्तियों को दुष्प्रभावित कर देता है। समाज संरचना में पारिवारिक संबंध इस रूप से ही गुने-बुने होते हैं। 

नेहा जी के कहने के बाद, जब मैंने, कुछ कहने में देर लगाई तो शायद नेहा जी को मुझ पर ही संदेह हो गया था। मेरी शक्ल पर 12 बजा हुआ देख कर उन्होंने अधीरता से पूछा - 

क्या हुआ रिया जी, मैंने जो कहा उससे आप व्यथित दिख रही हैं?         

उनके इस प्रश्न के बाद मैंने, मन ही मन कुछ तय कर लिया था। तब मैंने स्वयं को संयत करते हुए सधे स्वर में कहना शुरू किया - 

ऋषभ और मैंने जो तय किया था उस अनुसार, जो मैं, आपको आगे बताने जा रही हूँ वह मैं, आपको कभी नहीं बताती अगर, नवीन ने इस संबंध में यह झूठ आपसे नहीं कहा होता। 

यह सुनकर नेहा जी की जिज्ञासा बढ़ गई। उनके हाव भाव से दिख रहा था कि मेरा मुंह खुलता देख, उन्हें नवीन की सच्चाई शीघ्र ही पता हो जाने वाली है। तब मैंने नेहा जी के दोनों हाथ अपने हाथ में वैसे ही लिए थे जिस तरह से नवीन ने, उस शाम मेरे हाथ पकड़े थे। फिर बताया - 

नेहा जी, 15 दिन पहले नवीन ने हनुमानताल के पास बाइक रोककर मेरे हाथ ऐसे ही पकड़े थे और मुझसे कहा था -

“मेरी डार्लिंग, प्राणप्रिया, मैं, तुम को अपनी जान से ज्यादा प्यार करता हूँ।”

जी हाँ, नेहा जी वह कुलीग मैं ही थी। मैंने प्रतिरोध कर उससे पीछा छुड़ाया था। घटना का होना जैसा नवीन ने आपको सुनाया है, वह सफेद झूठ है। सच्चाई यह है कि नवीन से घर तक लिफ्ट लेने के पहले तक उसके लिए मेरे मन में जो विश्वास था, उस विश्वास का बलात्कार, मेरे साथ ऐसा करते हुए कर दिया था। 

नेहा जी यह अप्रिय सच सहन नहीं कर सकी। उन्होंने पीड़ा पूर्वक कहा - आपके साथ ऐसा करके नवीन ने मेरे विश्वास का भी बलात्कार किया है। 

फिर एकाएक नेहा जी ने रुष्टता से मुझसे कहा - 15 दिन हुए, आपने मुझसे मेरे पूछने के पहले यह क्यों छुपाये रखा, इसका क्या कारण है आप, मुझे बताओ?

मैंने कहा - ऋषभ से जब मैंने अपने पर बीती सब बताई थी तो, उन्होंने आपसे कहने को यह कहते हुए मना किया था कि, आपसे बताये जाने पर, आप दोनों में झगड़ा हो सकता है। जिसके कारण आपके और आपके बच्चे निर्दोष होते हुए भी दुःख भोगने को मजबूर हो सकते हैं। 

अब नेहा जी ने अविश्वास से मुझे देखा और पूछा - आपने ऋषभ जी से, यह सब बताया है?

मैंने कहा - 

मुझ पर दुःख, मेरी सहनशीलता से अधिक हो गया था। नवीन का बेड टच, मेरे शरीर को ही नहीं मेरी आत्मा को बींध रहा था। मैं, ऋषभ के विश्वास के संबल में जीती रही हूँ। इस कारण से, उसी रात मैंने, उनसे सब कह दिया था। 

मेरे पति, बहुत अच्छे हैं। कोई और पति होता तो शायद, इस बात के लिए गुस्सा करके पत्नी का मनोबल तोड़ देता। ऋषभ ने आत्मीय साथ देकर, उस रात मुझे टूटने नहीं दिया था।                

मेरे असहनीय वेदना के समय में, ऐसा साथ देकर ऋषभ ने, हम में बँधी परिणय सूत्र की गाँठ और मजबूत कर ली है। सच कहूँ तो ऐसा कहना अधिक सटीक होगा कि ऋषभ ने मुझे जन्म-जन्मातर तक के लिए अपने से जोड़ लिया। 

इतना कह -सुन लेने के बाद नेहा जी और मुझमें और किसी बात की गुंजाइश नहीं रह गई थी। हम, अपने बच्चों के पास आ बैठे थे। फिर स्कूल के समारोह की समाप्ति पर हम, अपने अपने घर के लिए चल दिए थे। 

अपने घर पहुँच कर नेहा रोबोट हो गई थी। वह, अपने सब कार्य यंत्रवत कर रही थी। मगर उसके मुख पर भावशून्यता प्रदर्शित हो रही थी। 

नवीन पिछले 15 दिन से नेहा की उपेक्षा अनुभव कर रहा था। मगर उसे समझ नहीं आ रहा था कि आज क्या हुआ है जिससे नेहा, उसके प्रति ही नहीं बल्कि बच्चों के प्रति भी बिलकुल उदासीन दिख रही है। 

उस रात नवीन को यह देखना ही बाकी रह गया था कि 15 दिन से जो नेहा, उसे हाथ नहीं रखने देते हुए भी उसके बगल में सोती थी, वह आज बच्चों के पास जाकर लेट गई थी। 

हाँ, लेटी होना ही सही शब्द था। बच्चे सो चुके थे मगर, नेहा की आँखों में नींद नहीं थी। वह गहन विचारों में डूबी हुई थी। 

वह सोच रही थी कि पुरुष दो एवं स्त्री भी दो थीं। पराये पुरुष की मर्यादाहीनता से पीड़ित रिया को, उसके पति के विश्वास और संबल ने घटना वाली रात ही संभाल लिया था।  ऐसे उनके परिवार की ख़ुशी सुनिश्चित हो गई थी।

दूसरा पुरुष नवीन था जिसने पहले रिया को अपनी मर्यादाहीनता से पीड़ित किया था। फिर पत्नी (नेहा) को प्रत्यक्ष पीड़ित ना होते हुए भी अपने कुटिल बहानेबाज़ी से परोक्ष रूप अधिक पीड़ित कर दिया था। 

रिया एवं ऋषभ जिन्होंने, नेहा और बच्चों के सुख प्रभावित ना हो जाएँ, इस उद्देश्य से अपने पर दुर्व्यवहार को ख़ामोशी से सह लिया था। जबकि नवीन ने अपनी बार बार की गई मूर्खता से, नेहा के सुख को नष्ट कर दिया था। 

रिया के द्वारा नवीन को दंडित करने का काम स्वाभाविक था, मगर नेहा ने उसे भूल सुधार का अवसर दे दिया था। यह मगर नियति को स्वीकार न हुआ कि नवीन अपनी बुरी करतूत के दंड से बच जाए। 

नवीन ने झूठे दोषारोपण के असफल हुए प्रयास से स्वयं पर अनायास दंड आरोपित कर लिया था। उस दंड की जद में परिवार में जुड़े होने से नेहा और उनके बच्चे भी आ गए थे। 

नेहा सोच रही थी, कदाचित आर्थिक रूप से आश्रित होने से, नवीन ने उसे हल्के से लेने की भूल की है। यह नवीन की गलतफहमी थी कि नेहा का आश्रित होना, नवीन का मनमाना कुछ भी किया सहन करने के लिए नेहा, को मजबूर करेगा। 

नेहा सोच रही थी कि उसे, नवीन की यह गलतफहमी इसी मौके पर दूर कर देनी चाहिए। यही उनके परिवार के हित में नेहा को उचित लग रहा था। 

उसने खूब सोचा कि क्या, नवीन, नेहा पर आश्रित है या नहीं? परिवार की दिनचर्या पर दृष्टि डालने से नेहा को स्पष्ट लग गया कि, निर्भरता - नेहा की नवीन पर जितनी है, उससे बहुत अधिक नवीन की नेहा पर है। 

तब आगे नवीन को क्या सबक/दंड जरूरी है यह नेहा ने सोने के पूर्व ही तय कर लिया था। 

सुबह वह उठी थी, यह दिन रविवार था। बच्चे एवं नवीन अवकाश होने से सोये हुए थे। नेहा ने अपने एवं बच्चों के कपड़े और जरूरी सामान, सूटकेस एवं बैग्स में पैक किये थे। फिर नाश्ता और खाना बनाया था। 

नवीन जब सोकर उठा तो उसने ये सूटकेस - बैग्स देखे थे। तब वह चिंता से नेहा के पास आया उसने पूछा - नेहा यह सब क्या है? कहाँ जाने के लिए ये पैकिंग की है?

नेहा ने सर्द स्वर में कहा - दो महीने के लिए मैं और बच्चे, शहर में ही मेरे भाई के घर रहेंगे। 

नवीन ने रिरियाते हुए पूछा - मगर क्यों, नेहा?

नेहा ने सर्द स्वर में ही आगे कहा - 

मुझे आप की खोटी करनी का पता चल गया है। अब दो महीने के समय में यदि आपने, किसी अन्य प्राणप्रिया की तलाश और उससे संबंध स्थापित नहीं किए तब, दो महीने बाद मुझे और बच्चों को लिवाने आ जाइयेगा। इस बीच बच्चे, स्कूल जाना आना, वहीं से कर लेंगे। आज के लिए मैंने, आपका नाश्ता और भोजन तैयार कर दिया है। 

नवीन अब आत्मसमर्पण कर देने वाली मुद्रा में आ चुका था, बोला - नेहा, मुझे क्षमा कर दो। अब आगे मुझसे ऐसी भूल कभी ना होगी। 

नेहा ने कहा - मैं यह अवसर देकर आपको क्षमा ही तो कर रही हूँ। आप चाहेंगे तो मैं, दो महीने बाद वापस आ जाऊंगी। यह दो महीने का समय मैं, इसलिए आपको दे रही हूँ कि आप खूब अच्छे से समझ लें कि परिवार के सुख सुनिश्चित करने के लिए “डूस एन्ड डोन्ट्स” क्या होने चाहिए। 

इस के लगभग दो घंटे बाद, नेहा ने ऑटो रिक्शा बुला लिया था। तब नवीन पश्चाताप में डूबा औरतों की तरह रो रहा था। 

मगर आज नेहा सख्त थी, उसके मन में नवीन के लिए आज कोई रियायत नहीं थी। वह, अपने बच्चों समेत, ऑटो में बैठ चुकी थी। 

बच्चे कुछ समझने योग्य हुए नहीं थे। वे, कुछ नहीं समझे थे और ऑटो में से हाथ हिलाकर कह रहे थे - बाय बाय, पापा …        

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

22-12-2020


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