Thursday, October 15, 2020

आज के समय में मम्मी एवं पापा होने की पात्रता?

 समय पुराना था, बेटियाँ 12-14 वर्ष की वय में ब्याह दी जातीं थीं। जीवन में अपना अच्छा-बुरा वह ससुराल के सानिध्य में पहचानती थी। अब बेटियों के विवाह की उम्र दुगुनी हो गई है। आशय यह कि वह जीवन को समझने के आरंभिक काल में बेटियाँ अधिक समय अपने माँ-पिता के सानिध्य में रहती है। अब उन्हें अपने अच्छे-बुरे की पहचान, माँ-पिता के मार्गदर्शन में करनी होती है। 

तात्पर्य यहाँ यह लिखने का है कि - 

माँ-पिता होने की पात्रता, दायित्व एवं उनकी भूमिका, कालांतर में बदल गईं है। मैं अपने स्तर से अब पापा होने की परिभाषा एवं पात्रता, (अपनी समझ से) अपनी, नई लिखी जा रही धारावाहिक (सामाजिक) कहानी के माध्यम से लिख रहा हूँ। 

मैं जानता हूँ इस लंबी कहानी पढ़ने का समय, हर किसी के पास नहीं होगा। 

इस संक्षिप्त पोस्ट के माध्यम से मेरा अनुरोध है कि मेरे आदरणीय/आदरणीया प्रबुध्द मित्र अपने खाली समय में विचार अवश्य करें कि क्या हो गई है अब, आज के समय में मम्मी एवं पापा होने की पात्रता? 

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