बेतरतीब हुए ख्यालों को
फिर तरतीब से सजा रहा हूँ
ज़िंदगी हिम्मत जुटा सारी
तेरे मिलने की सजा पा रहा हूँ
जिंदगी, हर कदम इक नई जंग है
जीते कईयों, क्यूँ इससे कोई तंग है
फिर तरतीब से सजा रहा हूँ
ज़िंदगी हिम्मत जुटा सारी
तेरे मिलने की सजा पा रहा हूँ
निर्दयी हुए जगत से जूझने
निर्दयी नहीं होना होगा
सब दयनीय रह जाते
'राजेश' दया धारण करना होगा
नाउम्मीद हुए ज़िंदगी से जब
यूँ हौसला रखते रहे
तब-बहुत वक़्त पड़ा है,दिन ये भी गुजर जायेंगे
अब-बहुत जी लिए हैं,दिन हम ही गुजर जायेंगे
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