लिखे बहुत अफ़साने कि
दुनिया की हरेक जान की परवाह थी
ख़ुद ही हुए बेजान से जब
इस परवाह की परवाह न हो सकी
कल की नारी के सुघड़ होने की परिभाषा कुछ और थी
अब
नित कल्पनातीत उपलब्धियों से वह परिभाषा बदलती है
दस वर्ष बाद ज़माने कुछ और होंगे
बिछड़ेगें कुछ, कुछ साथ नये होंगे
जीने के लिए नया नज़रिया तलाशना होगा
ज़िंदा हैं हम बताने, नये को अपनाना होगा
दुनिया की हरेक जान की परवाह थी
ख़ुद ही हुए बेजान से जब
इस परवाह की परवाह न हो सकी
कल की नारी के सुघड़ होने की परिभाषा कुछ और थी
अब
नित कल्पनातीत उपलब्धियों से वह परिभाषा बदलती है
दस वर्ष बाद ज़माने कुछ और होंगे
बिछड़ेगें कुछ, कुछ साथ नये होंगे
जीने के लिए नया नज़रिया तलाशना होगा
ज़िंदा हैं हम बताने, नये को अपनाना होगा
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