Sunday, November 5, 2017

मेरे बच्चे ..

मेरे बच्चे ..
जो गृहस्थी पति और बच्चों को ढोती रहीं थीं जीवन भर , उनके पति सिधार चुके , गृहस्थी अब बच्चों की हुई और स्वयं वृध्दावस्था में पहुँच वे गईं हैं। जीवन ने कोई दया रखी ही नहीं थी , जीवन संध्या भी कोई रहम नहीं कर रही है। सारा जीवन ढोने का क्रम चला - उसने इन माँ की कमर तक झुका दी है। फिर भी आप स्वतः देख लीजिये - नारी जिसे कमजोर समझा जाता है , सारी प्रतिकूलताओं में भी खुद वह , आज दोनों हाथों में सामान लिए चल रही है।
कोई है जो अपना आराम छोड़ दे किसी की खुशियों के खातिर ?? जी नहीं , सिर्फ एक माँ है , एक बूढी माँ है जो अब भी वही सोच रही जो आजीवन सोचती रही कि मेरे बच्चों को कोई परेशानी नहीं आये।
--राजेश जैन
05-11-2017
https://www.facebook.com/narichetnasamman/

 

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