Saturday, December 2, 2017

तीन तलाक का क़ानूनी मसौदा

तीन तलाक का क़ानूनी मसौदा

पहले सर्वोच्च न्यायालय ,अब क़ानूनी मसौदा और फिर दोनों सदनों में इस पर बहस का यह आज दौर है - इस समय एक सही कानून का बनना बिना विवाद समस्या का प्रभावी समाधान हो सकता है। इस्लाम पक्ष - कानून विद , समाज सेवी और नारी समानता को उत्सुक पक्ष तो अपनी राय रख ही रहे हैं , मेरी लेखनी से भी एक प्रयास।
वस्तुतः यह प्रत्यक्ष समस्या तो तीन तलाक भुक्तभोगी नारी की लगती है किंतु परोक्ष में तीन तलाक और नारी को भी भयाक्रांत करता है कि कब उनके शौहर रुष्ट हो जायें और कब किसी एक दिन उन्हें उनकी गृहस्थी से बेदखल कर बाहर निकाल दिया जाये। यह भय उनकी प्रतिभा अनुसार घर -परिवार की उन्नति में योगदान कर पाने में भी उन्हें असमर्थ रखता है। और अभाव दूर करने के लिये उनके कमाऊ हो सकने की संभावनाओं को भी मिटा देता है।
अतः एक दिन में (या नौ सेकंड) में उन पर आ सकने वाली विपदा का हल , निहायत जरूरी है।
लेखक से अगर इस पर परामर्श कोई चाहे तो वह यह होगा कि - शौहर एक दिन में कितने ही बार तलाक कहे , उसे एक बार कहा गया तलाक ही समझा जाये। इसकी सूचना पीड़िता पूर्व निर्धारित प्रारूप (फॉर्म) में - पुलिस थाने में जल्दी से जल्दी दे दे। उसी दिन शौहर उसे घर से बेदखल न कर सके फिर तीन महीने में दूसरी और तीसरी बार यदि तलाक कहा जाता है तो तलाक वैध हो अन्यथा वह तलाक नहीं समझा जाए। शौहर पर इस सब के बीच कोई सजा का प्रावधान न हो। शौहर पर दंड की तलवार तभी रहे जब कि वह नौ सेकंड में कहे गए तीन तलाक के आधार पर पत्नी को घर से बाहर होने को मजबूर करे।
यह प्रक्रिया यदि बनाई जाए तो यह इस्लाम अनुरूप तो होगी ही - इस पर मौलानाओं और किसी शौहर को आपत्ति का कोई कारण नहीं होगा। क्योंकि निकाह पूर्व क़बूले जाने के उपरांत ही कोई लड़की पत्नी हुई होती है। इसलिए कोई मौलाना या कोई शौहर इसके विरुध्द नहीं होगा क्योंकि मुस्लिम कौम और परिवार के खुशहाल होने के प्रति उनकी अहम जिम्मेदारी तो होती ही है।
इस व्यवस्था से मुस्लिम नारी - हलाला की रुसवाई झेलने से भी बच सकेगी।
-- राजेश जैन
03-12-2017
https://www.facebook.com/narichetnasamman/


 

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