Wednesday, August 23, 2017

कुप्रथायें जारी रखना - नारी सुरक्षा नहीं उन पर शोषण है


कुप्रथायें जारी रखना - नारी सुरक्षा नहीं उन पर शोषण है ..
----------------------------------------------------------------------
"प्रथायें जो देती थीं नारी सुरक्षा - बनीं शोषण विधियाँ
कुप्रथायें अब मिटानी होंगीं"
पिछली सहस्त्राब्दियों में दुनिया रियासतों - कबीलों में विभाजित हुआ करती थी। और एक दूसरे पर वर्चस्व में उनमें युध्द - मारकाट मची रहती थी। जिसमें बड़ी सँख्या में पुरुष मारे जाते थे। जीते पक्ष के सैनिक द्वारा धन संपत्ति की लूट के साथ नारियों को उठा ले जाना एवं उन पर रेप आदि अत्याचार किये जाते थे। दुश्मनों पर जीत के जश्न इस तरह मनाये जाते थे। कबीलों - रियासतों के कानून इतने अच्छे नहीं थे कि नारी अत्याचारों पर रोक हो सकती। यह सामाजिक परिदृश्य लगभग पूरी दुनिया में हुआ करता था। ऐसी परिस्थितियों में परिवार में नारी की सुरक्षा को लेकर कुछ सावधानी सभी पक्ष करते थे। जिनमें
1.नारी को घर से बाहर की गतिविधियों में भाग लेने पर प्रायः रोका गया था - जिससे शिक्षा-व्यवसाय इत्यादि के अवसर उन्हें कम थे।
2.उनके परिधान शरीर को ज्यादा ढँका-मुँदा रखने वाले डिज़ाइन किये जाते थे।
3.आपसी संघर्षों और युध्द में पुरुषों के मारे जाने से लिंग-अनुपात गड़बड़ाया हुआ रहता , नारी अधिक पुरुष कम जीवित रहते थे - इसे दृष्टिगत रखते हुए तथा नारी को सुरक्षा मिल सके इस कारण - पुरुष को बहु-पत्नी (एक से अधिक विवाह) को अनुमति दी गई थी।
लंबी अवधि में ये व्यवस्था जारी रहने से - नारी जीवन कुछ ऐसा ही होता है , यह पुरुष और नारी दोनों मानसिक रूप से स्वीकार करने लगे। नारी , तार्किक उस समय भी हुआ करतीं थीं , उनके तर्क को धर्म के नाम पर रीतियाँ बताकर - उपेक्षित कर दिया जाता था। इस तरह नारी पर वर्णित और अन्य कई कुप्रथायें चलती रहीं।
आज रियासत और कबीले खत्म किये जा चुके हैं , संविधान और कानून नारी सुरक्षा और अधिकारों को लेकर अत्यंत विस्तृत हो गए हैं। ऐसे बदले परिदृश्य में उन पर खतरे कम हो गए हैं। अतः अब ऐसी कुप्रथाओं को चलाये रखना - उनकी सुरक्षा नहीं उन पर शोषण है।
कुप्रथाओं की धार्मिक , सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर अब समीक्षा जरूरी है। और किसी देश के संविधान या कानून में बहुजन की आस्था को देख पुरानी तरह की रीति-नीति - कानूनों का प्रावधान है तो उसे बदल देना न्याय है।
नारी की शिक्षा -व्यवसाय के अवसर , सुरक्षा और सम्मान में पुरुष जैसी समानता मिलनी ही चाहिए।
(नोट -इतिहास पर सरसरी दृष्टि ही ली गई है - आलेख बड़ा न हो जाए , इसलिए मोटे तौर पर ही इतिहास उल्लेखित किया गया है। )
--राजेश जैन
24-08-2017
https://www.facebook.com/narichetnasamman

No comments:

Post a Comment