Tuesday, August 22, 2017

ट्रिपल तलाक और निकाह हलाला


ट्रिपल तलाक ..
"ट्रिपल तलाक और निकाह हलाला ही चुनौती नहीं
और भी कठिनाइयाँ हैं महिला के जीवन यापन में"
 
वस्तुतः शिक्षा अभाव एवं आर्थिक आत्मनिर्भरता नहीं होना , प्रमुख कारण हैं जिससे नारी के ऊपर दक़ियानूसी
विचार - हावी कराये गए हैं। जिससे पुरुष नारी से अपने लिए सुविधा पूर्वक साथ सुनिश्चित कर लेता है । सभी समाज में कमोबेश कारण हैं , जिससे नारी , मानसिक रूप से पुरुष पर निर्भरता स्वीकार करने तैयार रहती है। सृष्टि में मनुष्य का पुरुष और नारी संस्करण बना भी परस्पर साथ के लिए ही है। लेकिन धर्म के नाम पर बहुत सी ऐसी रीति-चलन बना लिए गए हैं , जिनमें अनेक जीवन विषयों में नारी को पुरुष के आधीन और पिछलग्गू होना पड़ता है। सदियों से ऐसा होते हुए भी नारी इस साथ में खुश भी रह लेती आई है। किंतु जब पुरुष प्रवृत्ति में उस पर हिंसा ,अत्याचार और शोषण की अधिकता हो गई तो - नारी में विद्रोह की सुगबुगाहट होने लगी। ऐसे में अगर वह अपने स्वाभिमान , आत्मनिर्भरता और शोषण के विरुध्द संघर्ष करती है तो उसे किसी भी धर्म-समुदाय में बुराई से नहीं लिया जाना चाहिए। एक अरूपी रूह हर मनुष्य में है जिसकी जीवन से उम्मीद , ख़ुशी की अपेक्षायें और सम्मान की लालसायें समान होती हैं। उल्लेखनीय यह भी है कि किसी रूह का कोई लिंगभेद नहीं होता।
अभी मसला मुस्लिम नारी का है अतः लिखना उचित होगा कि अशिक्षा , आर्थिक निर्भरता के कारण उस पर ट्रिपल तलाक , निकाह हलाला ही अभिशाप नहीं अपितु हिज़ाब , एक पुरुष की एकाधिक बीबियों में से एक होना और आधी आधी दर्जन संतानों को जन्म देकर थोड़े धन और छोटे असुविधाजनक मकानों में निर्वाह करना अतिरिक्त कठिनाई हैं। उसके समक्ष शौहर और औलादों को थोड़े संसाधनों में ही अच्छा भोजन और सुविधा मुहैया कराने की जटिल विवशता है। वह बहुत समय अधभूखी और फ़टे-पुराने कपड़ों में रहने को विवश है।
समय आया है कि पुरुष अपने स्वार्थ से ऊपर आकर देखे । अगर खुद इतना कमा लाने में सक्षम नहीं तो एक शादी करे , कम औलाद करे , बच्चे (बेटियोँ सहित) को उचित शिक्षा दिलवाये , उनकी आर्थिक स्व-निर्भरता को प्रेरित करे । नारी का स्वाभिमान से जीना शिक्षित होना , आर्थिक रूप से आत्म निर्भर हो जाना , पुरुष को अपना धर्म(हिंदू-इस्लाम आदि) निभाने में कहीं बाधक नहीं।
पुरुष यदि अपने को ज्यादा बुध्दिमान मानता है तो बुध्दिमानी का परिचय दे , नारी में आज भरे आक्रोश को समय पर पहचान ले , अन्यथा विद्रोह का सैलाब इस गति से आएगा कि पुरुष की बलिष्टता , बुध्दिमानी और श्रेष्ठता बोध सब डूब जाएगा। पुरुष -नारी का साथ सुखकारक होना चाहिए , दोनों आपसी सहमति और बुध्दिमत्ता और सूझबूझ से इसे सुनिश्चित कर सकते हैं। कोई कानून - कोई धर्म इसमें आड़े नहीं आता है।
--राजेश जैन
 23-08-2017
https://www.facebook.com/narichetnasamman/
 

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