पर हैं उड़ने के लिए फिर भी
अकारण नहीं हैं चिंतायें मेरी
कि भलमनसाहत के पर कतर, अब ये दुनिया
निर्लज्जता से स्वयं को श्रेष्ठ बताया करती है
No comments:
Post a Comment