संबंधों को विराम दे देना यों
तो सुविधा जनक होता है ,लेकिन मत
अंतर के कारणों में जाकर स्वयं को एवं अन्य को सच्चाई समझने को प्रेरित करना समाज
बनाना होता है। अनेक फेसबुक मित्र अपरिचित
होते हैं। इनके बीच लिहाज उतने दृढ़ नहीं होते हैं। इसलिए
आरोप प्रत्यारोपों और अप्रिय कथनों के साथ किनारा करते अनेक किस्से बनते हैं। यदि
ऐसी अप्रियता को धैर्य से ठीक करने के प्रयास किये जायें तो फेसबुक का प्रयोग समाज
सोहाद्र बढ़ा सकता है।
"हमें अपना समाज-राष्ट्र भला बनाना
है"
--राजेश जैन 27-03-2016
https://www.facebook.com/PreranaManavataHit
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