Sunday, July 5, 2020

यशस्वी (11) ...

यशस्वी (11) ...
जीवन में कुछ संयोग विशुद्ध ईश्वरीय इक्छा से होते हैं। अगर इन शुभ संकेतों को हम समझते हुए आगे कर्म एवं आचरण करें तो हम अपना जीवन सार्थक कर लेते हैं। हुआ यूँ कि मुझे पदोन्नति मिली एवं संयोगवश मेरी पोस्टिंग फिर, पिछले अर्थात यशस्वी के शहर में हो गई। 
यशस्वी के लिए यह समाचार अत्यंत सुखद रहा। युवराज, अभी गया ही था और हम पहुँच गए थे। 
वह मेरी बेटी सहित हमारे लिए, तीन पुष्पगुच्छ लेकर मिलने आई। मेरी बेटी जीवनी से, यशस्वी की यह पहली भेंट थी। यशस्वी बहुत खुश थी। उसने कहा-
सर, आपके प्रमोशन से आपकी व्यस्तता और जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाने वाली हैं। आपका यहाँ आना शहर और मेरी, अपेक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत सुखद है। मैं अपने विषय पर, मार्गदर्शन के लिए आप तीनों से एक मीटिंग करना चाहती हूँ। आप जब इसके लिए समय निकाल सकें, मुझे बताइयेगा।  
मैंने कहा था - अवश्य, यशस्वी हम किसी अवकाश वाले दिन बैठक कर लेंगे।
कुछ देर रहकर हमारे यहाँ आगंतुकों का क्रम देखकर यशस्वी चली गई थी।अगले अवकाश के दिन यशस्वी, तपस्वी को भी लेकर आई था। प्रिया, जीवनी एवं मैं उनके साथ ड्राइंगरूम में बैठक के लिए इकट्ठे हो गए थे। यशस्वी ने सर्वप्रथम, प्रिया एवं मुझे अपना आदर्श बताया तथा हम दोनों के निःस्वार्थ सहयोग एवं प्रेम के लिए आभार व्यक्त किया था। इस पर हमने मुस्कुरा कर हाथ जोड़े थे। तब यशस्वी ने बताया -
अब मेरी 'यशस्वी सीता बुटीक' शहर की विख्यात शॉप हो गई है। ऐसा हो सकने का सारा श्रेय, सर एवं मेम आपको है। आज स्थिति यह हो गई है कि हमारे निर्मित परिधान की माँग इतनी हो गई है कि हम, उसे पुरा नहीं पा रहे हैं। मुझे हो रही आय तो हम कल्पना नहीं कर सकते थे, इतनी हो गई है। ऐसे में सुखद संयोग की तरह आप, मेम एवं सर, इस शहर में वापिस आ गए हैं। मैं चाहती हूँ कि आप दोनों, बढ़ी माँग की पूर्ति के लिए, हमारे आगामी तौर-तरीके तय कीजिये। 
मैंने कहा - यशस्वी अब समय आ गया है कि तुम अपने व्यवसाय में जो तुम्हें पर्याप्त से अधिक प्रतिलाभ दे रहा है, में सामाजिक सरोकार जोड़ो। 
यशस्वी ने कहा - सर, सामाजिक सरोकार तो परिधान में गरिमायुक्त डिजाइनिंग रखते हुए पहले ही मेम ने, जुड़वाया हुआ है।
मैंने कहा - यह सच है।  मगर हमारा सामाजिक सरोकार इतने में ही पूरा नहीं हो जाता। अब तुम्हें अपनी आय की सीमा निर्धारित करते हुए, बिक्री की जा रही सामग्री में लाभ कम लेने चाहिए। लाभ की कमी से पहले आय कम होती सी लगेगी, जो सामग्री के सस्ते होने से ज्यादा बिकने पर पूरी हो जायेगी। 
यशस्वी ने पूछा - सर, मगर हम तो पहले ही माँग की पूर्ति में कठिनाई अनुभव कर रहे हैं।
मैंने कहा - इसके लिए हमें व्यवसाय को बड़ा रूप प्रदान करना होगा। तुम समाज में से और जरूरतमंद युवतियों को, अपने यहाँ काम पर लगाओ। यह भी सामाजिक सरोकार ही होगा। मैनेजर रखते हुए, ड्रेस मटेरिअल ज्यादा बुलाओ। इससे यथोचित पूर्ति संभव हो सकेगी।  
यशस्वी ने पूछा - सर, आय सीमित रखने से क्या लाभ होगा?
मैंने कहा - यह पूँजीपति होने की चल रही प्रवृत्ति को बदलने का हमारा प्रयास होगा। इस प्रवृत्ति ने सभी को भ्रष्ट किया है। भ्रष्टाचार ने परस्पर छल कपट को बढ़ा दिया है। हर कोई इससे दुःखी होता है। भ्रष्टाचार करने वाला भी, दूसरे के भ्रष्टाचार में कसमसाता है। व्यर्थ के आडंबर में शान बघारने के चलन से, जीवन में बहुत से अच्छे किये जाने वाले कार्यों से मिलते, सुख से सब वंचित हो रहे हैं।   
यशस्वी ने तब तर्क किया - सर, मेरी बुटीक का आधार ही आडंबर है, आडंबर को पुष्ट करने वाला कार्य करते हुए, आडंबर का प्रचलन कैसे कम किया जा सकेगा?
इस प्रश्न ने मुझे तनिक कठिनाई में डाला फिर, मैंने उत्तर दिया - तुम्हारा तर्क, बुद्धिमत्ता पूर्ण है। वास्तव में नारी परिधान एक सीमा तक आवश्यकता है, आडंबर नहीं। सुव्यवस्थित परिधान, नारी को सहज करते एवं आत्मविश्वास देते हैं। प्रिया के मार्गदर्शन में डिजाइनिंग के माध्यम से तुमने, इन परिधान को गरिमायुक्त विविधता प्रदान की है। तुम्हारे मौसम अनुसार निर्मित वस्त्र धारण करने वाली नारी के लिए सुविधाजनक हैं। इनकी कीमत, मध्यम वर्ग की दृष्टि से ज्यादा नहीं है। तुम्हारे निर्मित किये परिधान, लाभ में कमी करने से निचले वर्ग के पहुँच में भी हो सकेंगे। तुम ऐसा ब्रैंड नेम भी नहीं हो जो, आडंबर बन रहा हो। 
मेरे उत्तर पर प्रिया यशस्वी सहित सभी ने सिर हिलाकर सहमति जताई।
तब प्रिया ने कहा - इन्होंने (मेरे लिए संबोधित), जिस मैनेजर की इस व्यवसाय में जरूरत बताई है, उसके लिए यशस्वी, तुम्हारी स्वीकृति हो तो अवैतनिक रूप से मैं, यह सेवा देने को तैयार हूँ।
यशस्वी आश्चर्य चकित रह गई फिर कहा - मेम, आप मालिक हो। आप बुटीक में मालिक होकर काम कीजिये, इससे बड़ी ख़ुशी मेरे लिए क्या होगी!   
प्रिया ने उत्तर दिया - इनकी कही बातों के प्रमाण के रूप में अभी ही, मेरे मन में इस भूमिका का विचार आया है। मैं इसे, ऐसा रखना चाह रही हूँ कि जिनका व्यक्तित्व गुणों से सुसज्जित होता है, उन्हें बाह्य आडंबर से सजने की जरूरत नहीं होती है। साथ ही, इनकी कही बातें, थोथे उपदेश न रहें, अतः मुझे स्वयं वह करके दिखाना है जो, इनकी बातों का मर्म हैअर्थात सामाजिक सरोकार में हमारी भी भागीदारी हो। 
यशस्वी ने कहा - आरंभ से ही डिजाइनिंग में, आपके मार्गदर्शन से, आपकी भागीदारी है, मेम। आपके पूरे परिवार से, मैं अत्यंत प्रभावित हूँ। यह मेरा सौभाग्य है कि आप सभी से, मुझे पुनः करीबी का अवसर मिला है। 
तब मैंने कहा - मेरी महत्वाकाँक्षा बड़ी है, यशस्वी। पहले अपने इस शहर में, तुम्हें मध्यम तथा निम्न वर्गीय नारी का ब्रैंड बनना है। फिर इसकी ख्याति एवं उत्पाद देश के शेष हिस्सों में पहुँचाना है। जब ऐसा किया जा सके तो, इसे सहकारिता से चलने वाले उद्योग में परिवर्तित करने की योजना रहेगी। जिसमें मालिक कोई नहीं होगा। सभी वेतनभोगी होंगे। संभावित इस सहकारिता उद्योग को हम "न लाभ न हानि" (No Profit No Loss) के आधार पर चलायेंगे। (फिर पूछा) तुम्हें, यह स्वीकार है?
यशस्वी की आँखे नम हुई, उसने कहा - सर, मेरा यह जीवन आपको समर्पित है। मैं अपनी ओर से, वचनबध्द हूँ कि आपके मार्गदर्शन पर आजीवन चलूँगी। 
तपस्वी, मंत्रमुग्ध सी सब सुन रही थी। जीवनी इस बीच अंदर गई थी। वापिस आई तो जल-नाश्ता चाय लिए, सेविका साथ थी। सभी ने जलपान किया था। फिर यशस्वी-तपस्वी चलीं गईं थीं।
उनके जाने के बाद जीवनी ने कहा था - मुझे गर्व होता है कि आप मेरे पापा-मम्मा हो। आप दोनों ही मुझे ही नहीं, और बेटियों को अपनी ही बेटी जैसा प्यार एवं मार्गदर्शन प्रदान करते हो  ....
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
05-07-2020

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