Saturday, August 20, 2016

विवाह हेतु कन्या की खोज ...

 विवाह हेतु कन्या की खोज ... ( 32 वर्ष पूर्व लिखित कहानी -अंक 1)
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ट्रेन तेज रफ्तार से भागी जा रही है , उससे हो रहे शोर से बेखबर दिनेश ख्यालों में खोया हुआ है ,सामने बर्थ पर उसका मित्र रोमेश सोया हुआ है ,दोनों की मंजिल बडनेरा है ,जहाँ दिनेश अपनी पत्नी के लिए लड़की का चुनाव करने जा रहा है. इसमें सहयोग के लिए उसने मित्र रोमेश को साथ आने हेतु मनाया है।
समान आदतों ,एवं विचारों वाले दोनों फ्रेंड्स का , लेकिन , लड़की और दहेज के विषय में सोचने का दृष्टिकोण अलग है । दिनेश को पत्नी के रूप में प्रमुख रूप से अति रूपवान और शारीरिक सौंदर्य से भरपूर लड़की के साथ ससुराल से आभूषण तथा सुख-सुविधा के सारे साधन दहेज में चाहिए हैं ।
जबकि रोमेश का आदर्श ,दहेज के विरुध्द है । नासमझ रूपवान पत्नी की अपेक्षा उसे औसत सुंदर किंतु गुणवान पत्नी स्वीकार्य है । इन स्पष्ट वैचारिक अंतर के बाद भी दिनेश ने बचपन से मित्र ,रोमेश को साथ लिया है । अहमदाबाद से चलने के बाद अब तक इन विचारों के पक्ष और विपक्ष में दोंनों में लंबा तार्किक विवाद छिड़ चुका है । रोमेश के सोने के बाद दिनेश उन्हीं बातों में डूबा हुआ है । सुंदर पत्नी की अभिलाषा एवं धन-वैभव के प्रति अतिरिक्त आकर्षण की भावना उसे रोमेश से सहमत नहीं कर पा रही है ....
दिनेश स्वयं से बात कर रहा था , कह रहा था , ये सब आदर्शवादी जब कठोर यथार्थ में धन अभाव भुगतते हैं तो या तो जीवन की दौड़ में पिछड़ जाते हैं ,अथवा उन्हें अपने विचारों को दुरुस्त कर लेना पड़ता है। ऐसा कहते हुए स्वयं को संतुष्ट करता है , और फिर सर को झटक कर घड़ी देखता है , अभी सात घंटे बाकि हैं सोचते हुए , बर्थ पर पाँव फैलाकर लेटता और चादर खींच ओढ़ कर सोने की कोशिश करता है।
सबेरे चार बजे बडनेरा पहुँचने पर रोमेश उसे झिझोड़ता है तब उसकी नींद खुलती है। दोनों अपना सामान समेट प्लेटफॉर्म पर उतरते हैं , तो तलाश करते हुए ईश्वरचंद जी उन तक स्वागत करने पहुँच जाते हैं। उनका पुत्र नहीं है , इसलिए इतनी सुबह स्वयं आये हैं , दिनेश और रोमेश अपने को व्यवस्थित कर रहे हैं तभी एक 17-18 वर्षीया लड़की उन्हें मुस्कुराते हुए नमस्ते करती है। इस बीच ईश्वरचंद जी कुली को ले आते हैं , उस लड़की से परिचय कराते हुए कहते हैं , यह मेरी द्वतीय बेटी ऋतु है , ऋतु ,आप , दिनेश जी हैं। फिर ,रोमेश की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि डालते हैं , दिनेश ऋतु से हाथ जोड़ अभिवादन करता है , और रोमेश का परिचय देता है , ये रोमेश हैं , मेरे क्लोज्ड फ्रेंड। रोमेश , ईश्वरचंदजी एवं ऋतु से हाथ जोड़ नमस्ते करता है।
रिक्शों पर सवार हो सब घर पहुँचते हैं ....
स्वच्छ किंतु साधारण घर ,गृहस्वामी की मध्यम आर्थिक स्थिति का परिचय दे रहा था।
अंदर से एक महिला हाथ जोड़कर सामने निकलीं एवं पूछा दिनेश बाबू ,रास्ते में कोई परेशानी तो नहीं हुई ? ये श्रीमती ईश्वरचंद थीं.
नहीं आराम का सफर रहा , आप सभी तो अच्छे हैं ? कहते हुए जबाब में दिनेश ने प्रश्न किया।
हाँ मैं एवं घर में सब अच्छे हैं , मंजू दीदी भी अच्छी हैं , कहते हुए 9-10 वर्षीया बालिका सामने आई। उसके इस तरह बीच में बोल पड़ने से सब हँस दिए। यह ईश्वरचंद जी की सबसे छोटी बेटी ,मधु थी। थोड़ी चर्चा के बाद दिनेश सोने चला गया। अभी पाँच बज रहे थे , रोमेश ने अपनी आदत अनुसार मॉर्निंग वॉक को जाने की इक्छा बताई तो ईश्वरचंद जी ने ,मधु को रोमेश के साथ कर दिया। रोमेश ने बात करने के लिए पूछा , आप कौनसी पढ़ती हैं , मधु ने कहा चौथी क्लास में। और आपकी दीदी ? उन्होंने बी एससी किया है ,मंजू दीदी बहुत अच्छी और बहुत सुंदर हैं , मुझे बहुत प्यार करती हैं। उनके जाने के बाद हमें बहुत बुरा लगेगा। कहते हुए मधु के मुख पर करुणा के भाव उमड़ आये। उसने जिज्ञासा से पूछा , आपके मित्र उन्हें पसंद तो करेंगे ना ? वे बहुत होशियार हैं हर कार्य बहुत अच्छा करती हैं। कम बोलती हैं फिर भी सबकी चहेती हैं , सुंदर भी बहुत हैं।
छोटी सी बालिका का फिक्रमंद हो पूछना इस बात का परिचायक था कि ईश्वरचंदजी के गृह वार्तालाप में मंजू के विवाह की चिंता प्रमुख होती होगी। तभी ये छोटी बालिका इतना सोचती है। रोमेश ने मधु आश्वस्त करने के इरादे से कहा।, तुम्हारी दीदी इतनी सुंदर और होशियार है तो दिनेश उन्हें पसंद करेगा ही।
पसंद करने से कहाँ शादी हो रही है , दो साल में 5 लड़के आये , पसंद सबने किया किंतु सब पैसा माँगते हैं। क्या आप लोगों को भी पैसा चाहिये ? कहते हुए मधु आँखें नम गई थी , उस छोटी बच्ची का चिंतामग्न मुखड़े से , रोमेश को हैरत हुई , मासूम उसका चेहरा ऐसा कि हृदय में बस जाये और प्रश्न ऐसा कि हृदय को चुभ जाये।
नहीं मधु हम लोग दहेज नहीं चाहते ,हमें अच्छी लड़की चाहिये ,मधु को मायूसी नहीं हो इसलिए रोमेश ने ऐसा कहा ,किंतु झूठ के कारण अपनी आवाज ही खोखली लग रही थी। चलते हुए काफी दूर आ जाने का जैसे ही आभास हुआ , उसने मधु से कहा , अब हम वापिस चलें ? मधु की हामी के बाद दोनों लौट गए।
अभी दिनेश ,रोमेश ,ईश्वरचंद जी एवं मधु ड्राइंग रूम में बैठे हैं , दिनेश के चेहरे पर उसका उखड़ापन झलक रहा है। रोमेश , कारण समझ रहा है। ख़ामोशी के बीच , पायल की आवाज सुनाई पड़ती है , आवाज के तरफ सबकी निगाहें जाती हैं तो ,सामने दरवाजे से , मंजू आती दिख रही है , उसके हाथों में ट्रे है , जिस पर नाश्ता है। साथ में ऋतु है।
मंजू पहले दिनेश के तरफ देखती है , हल्की मुस्कान से अभिवादन कर दिनेश को प्लेट में नाश्ता देती है ,फिर बारी बारी सबकी प्लेट ,ऋतु की मदद से परोसती है। ईश्वरचंद जी सभी को बता रहे हैं , यह मंजू , मेरी सबसे बड़ी बेटी है। साधारण श्रृंगार में वह ,सुंदर एवं इम्प्रेसिव दिख रही है।
रोमेश , मंजू एवं ऋतु को खड़े देख ,उन्हें बैठने कहता है , दोनों सामने कुर्सियों पर बैठती हैं.
लीजिये दिनेश बाबू ,रोमेश बाबू - नाश्ते की ओर संकेत करते हुए ईश्वरचंद जी आगे दिनेश को मुखातिब हो कहते हैं , कुछ बातें भी कीजिये ताकि , आपस में समझने में मदद मिले , कहते हुए हँसते हैं। इस पर रोमेश , दिनेश को कुहनी मारते हुए बोलने को इशारा करता है। दिनेश , संकेत से ही जब रोमेश को मना करता है तो ,रोमेश ही मंजू से पूछता है -
मंजू जी , अपनी पढ़ाई और रुचियों के बारे में हमें बताइये , कुछ !
मंजू अपनी कुर्सी पर पहले स्वयं को व्यवस्थित करती है ,फिर पलकें झुकाये हुए ही कहती है - गृहकार्यों के साथ , कुछ कविता करना मेरे शौक हैं , मैं टेबल टेनिस खेलना पसन्द करती हूँ एवं आगे परिस्थितियाँ अनुकूल मिलीं तो नारी-परिधानों पर अपना व्यवसाय लगाना चाहूँगी। मेरी हॉबी में -संसार के विभिन्न प्राणियों के विषय में जानकारी बढ़ाना भी शामिल है।
जी , बहुत अच्छी हॉबी और ऐम हैं आपके , आप हमसे कुछ पूछना चाहेंगी , दिनेश ,रुखाई से कहता है. मंजू ,पहली बार पलकें उठाकर दिनेश के तरफ देखती है , रोमेश को मंजू की बड़ी आँखे यह कहती प्रतीत होती हैं , कि आप शादी के लिए हाँ तो कीजिये , आप जो भी हैं जैसे भी हैं ,स्वीकार्य हैं।
बातों में आ गई रुकावट को पाटने के लिए ईश्वरचंदजी कहते हैं , अरे नाश्ता तो कोई ले ही नहीं रहा है , लीजिये ना , हँसते भी हैं।
रोमेश , सब देख सुन - भारतीय समाज में 'नारी लाचारियों' के अहसास से रोष से भर उठता है।
इस बीच दिनेश उकताहट छिपाये बिना कहता है , शीघ्रता कीजिये ,हमें 12.30 की ट्रेन से जाना है। ईश्वरचंद जी नैराश्य भाव से कहते हैं , दिनेश जी , इतनी भी क्या जल्दी है , कल जाइयेगा। नहीं , नहीं हमें छुट्टी नहीं मिली है , कल ऑफिस पहुंचना जरूरी है , दिनेश ,रुखाई से जबाब देता है। रोमेश मन ही मन , प्रोग्राम में हुए बदलाव का कारण समझ रहा है , उसे साफ परिलक्षित है कि गृहस्वामी की साधारण आर्थिक दशा के कारण , सुंदर मंजू में भी , दिनेश की कोई रूचि ,उत्पन्न नहीं हुई है। तीन लड़की के पिता ,ईश्वरचंद जी असहाय से दिनेश के भाव तो समझते हैं , किंतु कोई प्रतिरोध नहीं कर पाते हैं।
रिक्शा आ गया है , ईश्वरचंद जी सपत्नीक , अपनी मंझली एवं छोटी बेटी , ऋतु एवं मधु के साथ दरवाजे पर दिनेश एवं रोमेश को विदा कर रहे हैं। ये सभी , अपनी लाचारी एवं आर्थिक सीमाओं से एक और विवाह प्रस्ताव में मिली असफलता को अनुभव कर अंदर से दुःखी हैं , सभी ऊपर से मुस्कान बिखेर रहे हैं , किंतु छोटी सी मधु की आँखों में जैसे अश्रु उमड़ रहे हैं , रोमेश एक बार देखने के बाद , उसकी तरफ देखने का साहस नहीं कर पाता है।
पहुँचने पर कुशलता का समाचार दीजियेगा एवं अपनी राय बताइयेगा , ईश्वरचंद दम्पत्ति हाथ जोड़कर लगभग साथ ही कहते हैं। उनके हावभाव से स्पष्ट प्रदर्शित है कि ,भारतीय समाज में बेटी के माँ-पिता को मिलने वाली प्रताड़ना के वे अभ्यस्त हो चुके हैं। मधु एवं ऋतू के हाथ जोड़कर नमस्ते कहने में एक याचक भाव रोमेश समझ रहा है। नमस्ते , दिनेश का जबाब होता है ,वह रिक्शे वाले से कहता है , चलो भाई स्टेशन , रिक्शा चलता है।
रिक्शे में - जिस के खुद के घर , फ्रिज , बाइक , डायनिंग टेबल तक नहीं , वह क्या शादी में देगा , देखो टिकट कटाने तक नहीं आया , दिनेश बड़बड़ा रहा है। रोमेश ,अपने पर नियंत्रण रख ,चुप रहता है। ट्रेन में रोमेश ,दिनेश से पूछता है , यार ,क्या जबाब देना है , इन्हें पत्र में ? दिनेश रोष में -यार ,क्या ऐसे नंगों के यहाँ शादी करूँगा , कोई जबाब की जरूरत ही नहीं है .
रोमेश यह सुन चुप हो जाता है , मधु का मॉर्निंग वॉक में कहा और उसका मासूम मुखड़ा , उसके स्मृति पटल पर उभर आता है , वह विचारों में तल्लीन दिखता है। उसके मुख पर भाव से लगता है , जैसे वह किसी बड़े निर्णय पर पहुँच गया हो।
घर में टेबल पर रख ,रोमेश एक पत्र लिख रहा है -
मैं अपनी आधुनिकतम सुविधा-आराम की वस्तुओं की लालसायें एक बेटी के पापा पर थोपकर उस पूरे घर की मुस्कान छीनने का अपराध नहीं कर सकता। आपके परिवार को किसी लड़के या लड़के के परिवार वालों के सामने याचक होते हुए देखना एवं ऐसी कल्पना मेरे लिए असह्य है। मेरा मित्र दहेज के अभाव में आपके यहाँ संबंध करने का इक्छुक नहीं है। मैं आपकी जाति का नहीं हूँ , इसलिए यह लिखने/कहने में यद्यपि तनिक मुझे संकोच है , किंतु आपकी अपमान / पीड़ाजनक स्थिति मुझे वेदना दे रही है, इसलिए लिख रहा हूँ , मंजू से विवाह अगर मेरा होता है तो स्वयं को भाग्यवान मानूँगा। मंजू एवं आपके परिवार के सँस्कार और विचार मुझे पसंद आये हैं। अगर आप सभी सहमत हों तो मुझे मंजू से विवाह-बंधन में बँधना स्वीकार है.
मैं अपने वेतन से अपनी एवं अपने परिवार की सामान्य आवश्यकतायें ,स्वयं पूर्ण करने में समर्थ हूँ। आपके उत्तर की प्रतीक्षा में ,
आपका-
रोमेश ....
इस पत्र को लिफाफे में रखकर रोमेश उस पर ईश्वरचंद जी का एड्ड्रेस लिख , पोस्ट कर देता है।
आज बडनेरा से आया पत्र मिलते ही , रोमेश बेल-बजा कर प्यून को किसी के द्वारा कुछ समय डिस्टर्ब न करने का निर्देश देता है। फिर पत्र पढ़ता है -
आदरणीय रोमेश जी , अभिवादन आपका
पत्र मिला था , मैंने पापा को उसका उत्तर देने के लिए मना किया था , पत्र का जबाब मैं स्वयं लिख रही हूँ। सर्वप्रथम ,आपकी भावनाओं और आपके विचारों की मैं प्रशंसा करती हूँ। और इससे भी सहमत हूँ कि एक इंजीनियर से भले ही वह अन्य जाति का हो, विवाह एक लड़की के लिए सौभाग्य की बात है। आप बहुत योग्य हैं ही , साथ ही सुलझे विचारों के धनी भी हैं। तब भी - मेरे परिवार की सामाजिक स्थिति का मुझे ज्ञान है। साथ ही ,स्वयं , दो छोटी बहनों की बड़ी बहन होना भी मुझे अहसास है। मैं उनकेऔर परिवार के भविष्य को कोई खतरा नहीं उठा सकती। समाज में आज भी अंतरजातीय विवाह अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता है। आपसे मेरा विवाह कर लेना , कल ऋतु एवं मधु के योग्य संबंधों में बाधक बन सकता है , अतः क्षमा कीजियेगा। आप अपने लिए अन्य योग्य कन्या तलाश कर लीजियेगा। आपको मेरे से अधिक गुणशाली लड़की , पत्नी रूप में मिले , मेरी हार्दिक शुभ कामनायें।
-मंजू
पढ़ते ही रोमेश के हाथ से पत्र छूट जाता है। वह ,चेयर पर सिर थाम ,गहन निराशा में डूब बैठ जाता है। फिर विचार में लीन होता है, - एक तरफ दिनेश है स्वार्थ में एक लड़की के सपनों को ध्वस्त करता है। दूसरी तरफ एक लड़की , अपनी बहनों के भविष्य की चिंता में अपने उज्जवल भविष्य की संभावनाओं का त्याग कर रही है। विकट है भारतीय समाज में एक विवाह योग्य - गुणवान कन्या की दशा। धर्म-जाति में विवाह की इक्छा करे तो दहेज और माँ-पापा को स्वाभिमान से समझौता करते देखे , और अंतरजातीय विवाह में तरह तरह के आक्षेप सहन करे ....
--राजेश जैन
20-08-2016
https://www.facebook.com/narichetnasamman

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